Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : १७ :
समयसारनो जे अभ्यास
करशे तेनो मोह नष्ट थशे
* शुद्धात्माना घोलनथी परिणतिनी शुद्धता *
[कलशटीका–प्रवचन]
परपरिणति हेतोर्मोहनाम्नोऽनुभावात्–
अविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः।
मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते–
सर्वतु समयसारव्याख्ययैवानुभूतेः।।३।।
आत्माना परमार्थस्वरूपने बतावनारुं जे आ शास्त्र समयसार, तेनी टीका
रचतां आचार्य अमृतचन्द्रसूरि कहे छे के आ समयसारना उपदेशथी, एटले के तेमां
कहेला शुद्ध आत्मस्वरूपना वारंवार घोलनथी मारी परिणति परमविशुद्ध थाओ. अमुक
शुद्धि तो थई छे ने उत्कृष्टशुद्धि थाओ. जुओ, आ समयसारना टीकाकारनी भावना;
टीका वखते विकल्प तो छे, पण भावना विकल्प तरफ नथी ढळती, भावना तो शुद्धात्मा
तरफ ज ढळे छे. ‘समयसार’ ने नमस्कार करीने एटले शुद्धात्मा तरफ परिणतिने
वाळीने मंगल कर्युं छे. हवे मारी पर्याय शुद्धात्मा तरफ ज उग्रपणे ढळ्‌या करो. श्रुतनी
टीका वखते अंतरना भावश्रुतमां वारंवार शुद्धात्माना घोलनथी परिणति शुद्ध थती ज
जाय छे.
आ समयसार जेवुं जे परम अध्यात्म शास्त्र, ते परमार्थस्वरूपनुं बतावनार छे,
ने पर प्रत्ये परम वैराग्य करावनार छे.–आवा शास्त्रना घोलनथी परिणति शुद्ध केम न
थाय? –जरूर थाय ज. आ शास्त्र समस्त पर प्रत्येथी वैराग्य उपजावे छे, क््यांय पण
पराश्रयने के रागने नथी पोषतुं, शुद्धात्मानुं परमार्थ स्वरूप बतावीने स्वाश्रय करावे
छे, तेथी तेना अभ्यासवडे भावश्रुतनी निर्मळता थती जाय छे, वीतरागतानी वृद्धिवडे
परिणति शुद्ध थती जाय छे.
स्वभावथी तो हुं शुद्ध चिन्मात्र छुं–एम शुद्धस्वरूपनी द्रष्टि सहित आचार्यदेवे