Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : २१ :
छे. बंने नयोने परस्पर विरुद्धपणुं छे–एक नयनो विकल्प एवो छे के वस्तु द्रव्यरूप छे,
बीजा नयनो विकल्प एवो छे के वस्तु पर्यायरूप छे.–आवा नयविकल्पवडे वस्तु
अनुभवमां आवती नथी, बंने नयना विरोधने मटाडीने, अने शुद्धआत्मानो आश्रय
करावीने जिनवचन शुद्धस्वरूपनो निर्विकल्प अनुभव करावे छे.
जुओ, आ कळशटीकामां अध्यात्मना सरस भावो खोल्या छे. पं
बनारसीदासजीना वखतमां आ ग्रंथनो अभ्यास करनारा साधर्मीओ कहेता के ‘सरस
सरस यह ग्रन्थ’
शुद्धजीवस्वरूपना अनुभवमां बंने नयना विकल्प छूटी जाय छे, माटे
अनुभवदशामां बंने नयना विकल्प जूठा छे–असत् छे. अनुभवमां तो द्रव्य–गुण–
पर्याय बधुं छे, पण तेमां विकल्प नथी; विकल्पने असत् कह्यो छे, पर्यायने असत् नथी
कीधी, पर्याय तो अंदर भळी गई छे, ने विकल्प छूटी गयो छे. निश्चयनयनो जे विषय
छे ते कांई जूठो नथी, पण अनुभवदशामां एनो विकल्प नथी, माटे विकल्पने जूठो
कह्यो छे. आवा अनुभव वडे मिथ्यात्वनुं सहजपणे वमन थई जाय छे. ज्यां आत्माना
स्वभावने उपादेय करीने परिणति ते तरफ वळी त्यां मिथ्यात्व सहजपणे छूटी गयुं.
परिणतिने अंतरअनुभवमां वाळ्‌या वगर लाख उपाये पण मिथ्यात्व छूटे नहि, अने
परिणति ज्यां अंर्तस्वभावमां वळी त्यां मिथ्यात्वभाव सहेजे ज छूटी गयो, त्यां तेने
टाळवानो जुदो प्रयत्न करवो नथी पडतो.
आ समयसारमां उपादेयरूप शुद्धजीववस्तु बतावी छे, एना अनुभवथी मोहनो
जगतमां अनंतानंत जीवो छे; तेमां अंनतमा भागना तो अभव्य छे, तेओ कदी
मोक्ष पामवाना नथी, केमके तेओ शुद्धआत्माना अनुभवथी रहित छे; हवे भव्य
जीवोमां पण कांई बधाय मोक्ष पामी जता नथी, तेमांथी केटलाक जीवो मोक्षना
अधिकारी छे, ते मोक्षगामी भव्य जीवोना मोक्षमां जवाना काळनुं माप छे, ते केवळी
भगवान जाणे छे. जेओ मोक्ष पामशे तेओ शुद्धात्माना अनुभवथी ज मोक्ष पामशे.
क््यो जीव केटलोकाळ वीततां मोक्ष पामशे तेनी नोंध केवळज्ञानमां छे. एटले के
केवळज्ञानीना ज्ञानमां ते बधुं लखाई गयुं छे– जणाई गयुं छे.
अहा, अनंता जीवो, तेनी त्रणकाळनी समस्त अवस्था जेमां साक्षात् जणाय–ए
केवळज्ञाननी ताकातनी शी वात! आवा केवळज्ञाननी अचिंत्य मोटाई जे ज्ञानमां बेठी
ते ज्ञान पण केवळज्ञाननी जातिनुं थईने मोक्षमार्ग तरफ चाल्युं.