Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : २७ :
आगमपद्धत्ति बेमांथी एक्केयनुं ज्ञान नथी. तेने आगमपद्धत्ति तो छे पण
आगमपद्धत्तिनुं ज्ञान तेने नथी; शुभराग वगेरे आगमपद्धत्तिने ज ते तो
अध्यात्मपद्धत्तिरूप मानी ल्ये छे.– ए वात आगळ वधशे. आगम तथा
अध्यात्मपद्धत्तिनुं खरुं ज्ञान सम्यग्ज्ञानीने ज होय छे.
संसारमां आगम अने अध्यात्मपद्धत्ति बंने त्रिकाळ छे, पण व्यक्तिगत एक
जीवने आगमपद्धत्ति अनादिथी छे, ने अध्यात्मपद्धत्तिरूप साधकदशा असंख्य समयनी
होय छे. कोई साधकदशामां लांबामां लाबो काळ रहे तो पण ते असंख्य समय ज होय,
तेथी वधु न होय; ने कोई जीव साधकदशामां ओछामां ओछो काळ रहीने सिद्ध थाय
तोपण तेने साधकदशामां असंख्य समय तो होय ज. संसारमां दरेक जीवने आ बधाय
भावो होय ज एवो नियम नथी; जेने जे लागु पडे ते समजी लेवा.
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हे जीव!
जो तारे शरीररहित थवुं होय,
कर्मनो ध्वसं करवो होय,
ने विकारी भावोनो अभाव करवो होय,
–तो–
शरीर रहित एवो अशरीरी,
कर्मथी रहित एवा अबंध,
ने विकार रहित ज्ञान स्वभावी,
एवा तारा आत्माने शुद्धनयनी द्रष्टिथी तुं देख.
ए स्वभावने अनुभवतां तारा भावकर्मो
टळी जशे, द्रव्यकर्मो छूटी जशे ने कर्मरहित
एवा सिद्धपदनी तने प्राप्ति थशे............
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