Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : वैशाख :
आवे छे. आ बंने पद्धत्तिनी धारा एकबीजाथी जुदी छे. आ बंने पद्धत्तिमां अनंतता
मानवी; आत्माना विकारी भावोमां अनंत प्रकारो छे ने तेमां निमित्तरूप कर्ममां पण
अनंत प्रकारो छे; आत्माना निर्मळ परिणामोमां पण अनंत गुणना अनंत प्रकारो छे;
ज्ञानादि गुणोना परिणमनमां पण अनंत प्रकार छे. आ रीते अशुद्धता के शुद्धता ए
बंनेमां अनंतता समजवी.
जेम समयसारमां अज्ञानीने पुद्गलकर्मना प्रदेशमां स्थित कह्यो, तेम अहीं
अशुद्ध– परिणामने पुद्गलाकार कह्या, ते आत्माना स्वभावनी जात नथी तेने आत्म–
आकार न कह्या. आत्माना आश्रये प्रगटेला, आत्माना शुद्धपरिणाम छे ते आत्म–
आकार छे तेमां पुद्गलनो संबंध नथी, आत्माना स्वभाव साथे संबंधवाळा जे भाव
होय ते आत्माने सुखनुं कारण होय. पुद्गल साथे संबंधवाळा जे भाव होय ते
आत्माने सुखनुं कारण न होय, तेथी ते भावो उपादेय नथी; ते तो आगंतुक एटले
बहारथी आवेला छे, ते कांई घरमांथी प्रगटेला नथी, के घरमां रहेवाना नथी. ते
भावोमां खरेखर आत्मा नथी, तेमां मोक्षमार्ग नथी. जे कोई शुभाशुभ भावो छे तेमां
आत्मानो अधिकार नथी पण आस्रवनो अधिकार छे, बंधनो अधिकार छे. ए विकारी
भावोनुं स्वामीपणुं आस्रव ने बंध तत्त्वोने छे. आत्माना स्वभावने तेनुं स्वामीपणुं
नथी, माटे तेमां आत्मानो अधिकार नथी. आत्मानो अधिकार तो शुद्ध चेतना
परिणाममां छे. आगमपद्धत्ति छे ते उदयभाव रूप छे, ने अध्यात्मपद्धत्ति उपशम–क्षायक
के सम्यक्क्षयोपशमभावरूप छे.
पुण्य–पाप–आस्रव–बंध ने अजीवकर्म ए पांच तत्त्वो आगमपद्धत्तिमां
समाय छे, ने संवर–निर्जरा–मोक्ष तथा शुद्धजीव ए चार तत्त्वो अध्यात्मपद्धत्तिमां
आवे छे. आम बंने पद्धत्ति एक बीजाथी विलक्षण छे. तेनुं स्वरूप ओळखे तो
भेदज्ञान थई जाय ने मोक्षमार्ग प्रगटे; एटले पोतामां अध्यात्मनी परंपरा
विकसवा मांडे ने आगमनी (कर्मनी तथा अशुद्धतानी) परंपरा तूटवा मांड.े–आनुं
नाम धर्म. आवी अध्यात्मपद्धत्तिनी (एटले के शुद्ध परिणमननी परंपरानी)
शरूआत चोथा गुणस्थानथी थाय छे. चोथाथी चौदमा गुणस्थान सुधी
अध्यात्मपद्धत्ति छे; परंतु त्यां जेटली अशुद्धता ने कर्मनो संबंध छे तेटली
आगमपद्धत्ति छे. ते सर्वथा छूटी जतां संसार छूटी जाय छे ने सिद्ध दशा प्रगटे छे;
त्यां पछी पुद्गलकर्म साथेनो जराय संबंध रहेतो नथी, ने संसारनी अनादिनी
परंपरा पण अत्यंतपणे छेदाई जाय छे.
अज्ञानी तो आगमपद्धतिने, एटले के विकारने तथा कर्मना संबंधने ज
जीवनुं स्वरूप माने छे, जीवना शुद्ध स्वरूपने ते जाणतो नथी, एटले तेने
अध्यात्मपद्धत्ति के