सूक्ष्म विचारथी जोतां एकेक बीजमां भविष्यना अनंता वृक्षनी ताकात छे.–एम बंनेनी
परंपरा विचारतां तेनो क््यांय पार न आवे, तेम जीवमां विकारनी ने कर्मनी परंपरा
अनादिथी चाली रही छे, ने शुद्धपर्यायनो प्रवाह पण जगतमां अनादिथी चाली ज रह्यो
छे. पहेलां सिद्ध के संसार? तो बंने प्रवाह पण जगतमां अनादिथी चाली ज रह्यो छे.
पहेलां सिद्ध के संसार? –तो बंने अनादिना छे? पहेलां विकार के कर्म? तो बंनेनी
परंपरा अनादिनी छे? पहेला द्रव्य के पर्याय? पहेलां सामान्य के विशेष? तो ए बंने
अनादिना छे, पहेलां–पछीपणुं तेमां नथी.