Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ४प :
जणाय छे. जो अनंतने अंत तरीके जाणे तो ते ज्ञान खोटुं, अने जो ‘अनंत’ ने न
जाणी ल्ये तो ते ज्ञान पुरुं नहि.
प्रश्न:– ‘अनंत’ होय ते ज्ञानमां कई रीते जणाय?
उत्तर:– भाई, पदार्थनी अनंतता करतां ज्ञान सामर्थ्यनी अनंतता घणी मोटी
छे, तेथी बेहद ज्ञानसामर्थ्य अनंतने पण पहोंची वळे छे, ज्ञाननुं अचिंत्य सामर्थ्य
लक्षमां आवे तो ज आ वात बेसे तेवी छे. विकारमां अटकेलुं ज्ञान मर्यादित छे ते
अनंतने नथी पहोंची शकतुं, पण विकार वगरना ज्ञानमां तो अचिंत्य बेहद ताकात छे,
ते अनादि–अनंत–काळने, अनंतानंत आकाश प्रदेशोने ए बधायने साक्षात् जाणी ल्ये
छे? अरे, एनाथी तो अनंतगणुं सामर्थ्य एनामां खील्युं छे.
प्रश्न:– अहीं वृक्ष अने बीजना द्रष्टांते विकार अने कर्म ए बंनेनी परंपरा पण
अनंत कीधी, तो पछी विकारनो नाश थईने मोक्ष क््यारे थाय?
उत्तर:– वृक्ष अने बीजनी परंपरा सामान्यपणे अनंत छे, पण तेथी करीने कांई
बधा बीजमांथी वृक्ष ऊगे ज एवो नियम नथी, घणांय बीज ऊग्या पहेलां बळी जाय
छे, ने तेने वृक्ष–बीजनी परंपरानो अंत आवी जाय छे, एकवार जे बीज बळी गयुं ते
फरीने कदी उगतुं नथी. तेम जगतमां सामान्यपणे विकार ने कर्मनी परंपरा अनंत छे,
तेनो जगतमांथी कदी अभाव थवानो नथी, पण तेथी करीने कांई बधाय जीवोने एवी
विकारी परंपरा चाल्या ज करे एवो नियम नथी; घणाय जीवो पुरुषार्थ वडे विकारनी
परंपरा तोडीने सिद्धपदने साधे छे, तेमने विकारनी परंपरानो अंत आवी जाय छे. जेणे
एकवार विकारना बीजने बाळी नाख्युं तेने फरीने कदी विकार थतो नथी. आ रीते
विकारनी परंपरा तूटी शके छे.
प्रश्न:– विकारनी परंपरा तो अनादिनी छे, तो तेनो अंत केम आवे?
उत्तर:– परंपरा अनादिनी होय माटे तेनो अंत न आवे एम नथी. जेम
वृक्ष– बीजनी परंपरा अनादिनी होवा छतां कोई एक बीज बळी जतां तेनी
परंपरानो अंत आवी जाय छे. तेम विकारनी परंपरा अनादिनी होवा छतां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे धर्मी जीवने तेनो अंत आवी जाय छे. जेम मोक्षमार्ग
अनादिथी न होवा छतां तेनी नवी शरूआत थई शके छे; तेम विकार अनादिनो
होवा छतां तेनो अंत थई शके छे.
प्रश्न:– आगम अने अध्यात्म (एटले के विकार अने शुद्धता) बंनेमां अनंतता
कीधी; ते कई रीते?