Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : वैशाख :
उत्तर:– विकारमां अनंत प्रकारो छे ने तेना निमित्तरूप कर्ममां अनंतानंत
परमाणुओ छे; ए रीते आगमपद्धतिमां अनंतता छे; अने जीवना अनंतगुणोनी
अनंत निर्मळ पर्यायो छे, एकेक निर्मळ पर्याय अनंता भावोथी ने अनंता
सामर्थ्यथी भरेली छे, ज्ञाननी एक नानी पर्यायमां पण अनंता अविभाग प्रतिछेद
अंशोनुं सामर्थ्य छे. आम अध्यात्मपद्धतिमां पण अनंतता जाणवी. एकेक
आत्मामां अनंतगुणो छे, एकेक गुणमां अनंत निर्मळ पर्यायो खीलवानी ताकात
पडी छे, ने एकेक निर्मळ पर्याय अनंत सामर्थ्य सहित छे. तारा एक आत्मामां
केटलुं अनंत सामर्थ्य छे–एनुं लक्ष कर तो स्वसन्मुखवृत्ति थाय ने अपूर्व
अध्यात्मदशा प्रगटे. एक तरफ विकारनी धारा अनादिनी, ने बीजी तरफ स्वभाव
सामर्थ्यनी धारा पण अनादिनी साथे ने साथे ज चाली रही छे, विकारनी धारा
वखतेय स्वभावसामर्थ्यनी धारा कांई तूटी नथी गई, स्वभावसामर्थ्यनो कांई
अभाव नथी थयो; परिणति ज्यां स्वभावसामर्थ्य तरफ वळी त्यां विकारनी
परंपरानो प्रवाह तूटयो ने अध्यात्मपरिणतिनी परंपरा शरू थई, जे पूरी थईने
सादि अनंतकाळ रह्या करशे, माटे हे भाई! अंतमुर्ख थई तारा स्वभावसामर्थ्यने
विचारमां ले.....लक्षमां ले प्रतीतमां ले.... अनुभवमां ले. लोकोने बहारनो विश्वास
आवे छे के एक बीजमांथी आवडो मोटो दश माईलना घेरावावाळो वड फाल्यो,
पण चैतन्यशक्तिना एक बीजमांथी अनंता केवळज्ञान– रूपी वडला फालवानी
ताकात छे तेनो विश्वास नथी आवतो. जो चैतन्यसामर्थ्यनो विश्वास करे तो तेना
आश्रये रत्नत्रयधर्मनी अनेक शाखा–उपशाखा प्रगटीने मोक्षफळ सहित मोटुं वृक्ष
ऊगे. भविष्यमां थनार मोक्षवृक्षनी ताकात अत्यारे तारा चैतन्यबीजमां विद्यमान
पडी छे.–सूक्ष्मद्रष्टिथी एने विचारमां लईने अनुभव करतां अपूर्व कल्याण थशे.
एक क्षण स्वानुभवथी ज्ञानीने जे कर्मो तूटे छे,
अज्ञानीने लाखो उपाय करतां पण एटलां कर्मो
तूटता नथी. आम सम्यक्त्वनो अने स्वानुभवनो
कोई अचिंत्य महिमा छे.–एम समजीने हे जीव! तेनी
आराधनामां तत्पर था.