Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : आत्मधर्म : ४७ :
निश्चयसम्यक्त्वथी ज मोक्षमार्गनी शरूआत छे
निश्चयसम्यक्त्व वगर जीव सम्यग्द्रष्टि कहेवाय नहि
“जेने स्व–परनुं यथार्थ श्रद्धान नथी, पण
जैनमतमां कहेला देव–गुरु ने धर्म ए त्रणने माने छे
तथा अन्य मतमां कहेलां देवादि वा तत्त्वादिने माने
नहि, तो एवा केवळ व्यवहार सम्यक्त्व वडे ते
सम्यक्त्वी नामने पामे नहि. माटे स्व–पर
भेदविज्ञान– पूर्वक जे तत्त्वार्थश्रद्धान होय ते सम्यक्त्व
जाणवुं.”
वाह, जुओ निश्चय–व्यवहारनी केवी स्पष्ट वात छे! यथार्थ श्रद्धानथी निश्चय
सम्यक्त्व थाय त्यारे ज जीव सम्यक्त्वी थाय छे. निश्चय सम्यक्त्व ज मोक्षमार्गरूप छे,
व्यवहार सम्यक्त्व तो शुभ–आस्रवरूप छे, ए कांई मोक्षमार्गस्वरूप नथी. सिद्धांतमां
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः” एम कह्युं छे तेमां निश्चय सम्यग्दर्शननी वात
छे. ‘तत्त्वार्थश्रद्धान सम्यग्दर्शनम्’ –ए निश्चय सम्यग्दर्शन छे. भूतार्थने आश्रित
सम्यग्दर्शन कह्युं (समयसार गा. ११) तेमां अने आ सम्यग्दर्शनमां कांई फेर नथी.
आवुं सम्यग्दर्शन चोथा गुणस्थाने प्रगटे छे ते ठेठ सिद्धदशामां पण रहे छे. शुभ रागरूप
व्यवहारसम्यग्दर्शन कांई सिद्धदशामां होतुं नथी. आ रीते निश्चय सम्यग्दर्शन ते ज
मोक्षमार्गरूप छे. चोथा गुणस्थानथी ज बधाय जीवोने आवुं निश्चय सम्यक्त्व होय छे.
आवा निश्चय सम्यक्त्व वगर धर्मनी के मोक्षमार्गनी शरूआत पण होई शकती नथी.
आत्मवस्तुनो जेवो स्वभाव छे ते ज प्रमाणे श्रद्धामां लेवो ते सम्यक्त्व छे, ने ते
वस्तुनो भाव छे एटले के निश्चय छे. आवा सम्यक्त्वनी भूमिकामां धर्मीने वीतरागी देव–
शास्त्र–गुरुनी ओळखाण, भक्ति, तेमना प्रत्ये उत्साह, प्रमोद, बहुमान अने विनय आवे
छे. पण आथी करीने कोई जीव एवा एकला व्यवहारमां ज संतुष्ट थई जाय ने निश्चय
सम्यक्त्वने भूली जाय तो एने सम्यग्द्रष्टि कहेता नथी. जो व्यवहारनी साथे ने साथे ज
निश्चय सम्यक्त्व (शुद्धात्मानी निर्विकल्प प्रतीत) होय–(“बंने साथ रहेल”) तो ज एनो
व्यवहार साचो छे, नहितर तो व्यवहाराभास छे. निश्चयश्रद्धा तो छे नहि