Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ४८ : आत्मधर्म : वैशाख :
ने एकला व्यवहारना शुभरागमां संतुष्ट थई जाय छे एटले ते रागने ज मोक्षमार्ग
मान्या वगर रहेशे नहि, तेथी तेनी श्रद्धा मिथ्या ज छे. आ रीते व्यवहारना आश्रये
मोक्षमार्ग छे ज नहि, निश्चय सम्यक्त्वादिना आश्रये ज मोक्षमार्ग छे, अथवा, जे
निश्चय सम्यक्त्वादि छे ते ज मोक्षमार्ग छे. व्यवहार सम्यक्त्वादि शुभरागरूप छे ते
मोक्षमार्ग नथी.
अरे, भाई मोक्षमार्ग तो वस्तुना स्वभावनी जातनो होय, के एनाथी विरुद्ध
होय? निश्चय सम्यक्त्वनो जे भाव छे ते तो वस्तुस्वभावनी ज जातनो छे ने
सिद्धदशामांय ते भाव रहे छे. व्यवहार सम्यक्त्वनो जे (राग) भाव छे ते
वस्तुस्वभावनी जातनो नथी पण विरुद्धभाव छे, सिद्धदशामां ते भाव रहेतो नथी.
आवी स्पष्ट अने सीधी वात, जिज्ञासु थईने समजे तो तरत समजाय तेवी छे. पण
जेने समजवुं न होय ने वादविवाद करवा होय ते तो आवी स्पष्ट वातमां पण कांईक ने
कांईक कुतर्क करशे. शुं थाय? कोई बीजाने पराणे समजावी शके तेम नथी.
तत्त्वार्थश्रद्धान ने सम्यक्त्व कह्युं छे; ‘तत्त्व’ एटले जे वस्तुनो जेवो ‘भाव’
होय तेवो जाणवो जोईए, तो ज ते वस्तुने साची रीते मानी कहेवाय. जीवमां ज्ञानादि
अनंत स्वभावो छे ते जीवनो ‘भाव’ छे; आ अनंत शक्तिरूप भावने भूलीने एक
क्षणिक विकार भाव जेटली ज जीवनी किंमत आंके, तो तेणे खरेखर जीवना ‘भाव ने
जाण्यो नथी. रागथी लाभ माननार खरेखर तो ते राग जेटली ज जीवनी किंमत मानी
रह्यो छे; ‘आ राग वडे मने जीवनो स्वभाव मळी जशे’–एनो अर्थ ए थयो के जीवना
स्वभावनी किंमत राग जेटली ज तेणे मानी. ते पोताना शुद्धस्वभावने, पोताना सम्यक्
भावने, पोताना स्वभावनी साची किंमतने जाणतो नथी. एटले बहारना पदार्थोने के
विकारी भावने किंमत आपे छे ने पोताने किंमत वगरनो विकारी कल्पे छे, तेथी तेना
श्रद्धा ‘सम्यक्’ नथी पण मिथ्या छे;–भले ते शुद्ध जैनना देव–गुरु–शास्त्रने शुभरागथी
मानतो होय ने कुदेवादिने मानतो न होय–तो पण एटलाथी तेनुं मिथ्यात्व छूटतुं नथी.
भाई, तारी अचिंत्य किंमत छे, जगतमां मोंघामां मोंघुं चैतन्यरत्न तुं ज छो, तारी
वस्तुमां प्रवेशीने तारा साचा भावने–साचा स्वरूपने तुं जाण तो ज तने सम्यक्त्व थाय
ने तारुं मिथ्यात्व टळे. स्व–परनुं भेदज्ञान त्यारे ज साचुं कहेवाय के जो शुद्धात्मानुं
श्रद्धान भेगुं होय; देव–गुरुनी ओळखाण त्यारे ज साची कहेवाय के जो शुद्धात्मानुं
श्रद्धान भेगुं होय. नवतत्त्वनी श्रद्धा त्यारे ज सम्यक् कहेवाय के ज्यारे भूतार्थस्वभावनी
सन्मुख थईने शुद्धात्मानुं श्रद्धान करे. एकला व्यवहारथी ए बधुं कर्या करे ने जो
शुद्धात्माना श्रद्धानरूप निश्चय सम्यक्त्व न करे तो ते जीवने सम्यग्द्रष्टि कहेता नथी. माटे