Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 60 of 89

background image
: वैशाख : आत्मधर्म : ४९ :
अंतरमां पोताना शुद्ध स्वभावने अवलंबीने जे प्रतीत थई, ते सम्यक्
प्रतीतनो भाव स्वभावमांथी आव्यो छे. ते प्रतीत स्वभावनी जातनी छे.
सिद्धभगवाननी प्रतीत अने नानामां नाना एटले के चोथा गुणस्थानवाळा
समकितीनी प्रतीत, ए बंनेनी प्रतीतमां कांई फेर गणवामां आव्यो नथी; जेवो
शुद्धात्मा सिद्धप्रभुनी प्रतीतमां छे तेवो ज शुद्धआत्मा समकितीनी प्रतीतमां छे.
बहारना आश्रये थयेलो व्यवहारश्रद्धानो भाव कांई बधा जीवोने एक सरखो नथी
होतो. पण आथी एम न समजवुं के ए भाव गमे तेवो (विपरीत पण) होय.
नवतत्त्वने जे विपरीत मानतो होय, देव–गुरु–शास्त्रने अन्यथा मानतो होय,
सर्वज्ञता वगेरेने मानतो न होय, एवा जीवने तो व्यवहारश्रद्धा पण विपरीत छे.
जेने नवतत्त्वनी, देव–गुरु–शास्त्रनी के स्व–परनी भिन्नतानी ओळखाण नथी तेने
तो शुद्धात्मानुं श्रद्धान बहु आघुं छे. अहीं तो ए बधा उपरांत आगळनी वात
बताववी छे के ए बधुं करवा छतां जो शुद्धात्मानी निर्विकल्प प्रतीति करे तो ज
सम्यग्द्रष्टि थाय, एना वगर सम्यग्द्रष्टि कहेवाय नहि.
‘शुद्धात्माना श्रद्धानरूप आवुं निश्चय सम्यग्दर्शन तो सातमा गुणस्थाने
होय, छठ्ठे–पांचमे–चोथे निश्चय सम्यग्दर्शन न होय’–आम कोई कहे तो एनो अर्थ
ए थयो के त्यां मोक्षमार्ग ज न होय, अरे भाई! ए तो मार्गनी घणी विपरीतता
छे. चोथे–पांचमे–छठ्ठे निश्चय वगर एकला व्यवहारथी ज जो तुं मोक्षमार्ग मानी
लेतो हो तो एने तो आचार्य भगवाने ‘व्यवहारमूढता’ कीधी छे. निश्चय वगरना
केवळ व्यवहारने मोक्षमार्गमां गणता नथी. मोक्षमार्गमां जे सम्यग्दर्शन कह्युं छे ते
शुद्धात्माना श्रद्धानरूप निश्चय सम्यक्त्व छे, अने एवुं निश्चय सम्यक्त्व चोथा
गुणस्थाने पण नियमथी होय छे, एटले त्यां एकदेश–मोक्षमार्ग पण गणवामां
आवे छे.
आवुं
सम्यक्त्वनुं साचुं स्वरूप पण न ओळखे ने तेमां गोटा वाळे तेणे तो
मोक्षमार्गनुं खरूं स्वरूप जाण्युं नथी. मोक्षमार्गनुं खरूं स्वरूप जे समजे पण नहि ते
तेने साधे क््यांथी? तेथी अहीं मोक्षमार्गना मूळरूप निश्चय सम्यक्त्वनुं स्वरूप कह्युं.
हजारो वर्षनां शास्त्र भणतर करतां एक क्षणनो स्वानुभव वधी जाय छे. जेने
भवसमुद्रथी तरवुं होय तेणे स्वानुभवनी विद्या शीखवा जेवी छे.