: प२ : आत्मधर्म : वैशाख :
एम ज्ञानने ज्ञानपणे ज राखतो ते सदाय भेदज्ञानरूपे, सम्यग्ज्ञानरूपे परिणमे छे; आ
रीते तेनुं बधुं य ज्ञान सम्यग्ज्ञान ज छे–एम जाणवुं. एक जीव घणां शास्त्रो भणेलो
होय ने मोटो त्यागी थईने हजारो जीवोथी पूजातो होय पण जो शुद्धात्माना श्रद्धानरूप
निश्चय सम्यक्त्व न होय तो एनुं बधुं य जाणपणुं मिथ्या छे; बीजो जीव नानुं देडकुं,
माछलुं, सर्प सिंह के बाळक दशामां होय, शास्त्रना शब्दो वांचता आवडतुं न होय छतां
जो शुद्धात्माना श्रद्धानरूप निश्चय सम्यक्त्वथी सहित छे तो एनुं बधुंय ज्ञान सम्यक् छे,
ने ए मोक्षना पंथे छे; बधाय शास्त्रोना रहस्यरूप अंदरनुं स्वभाव–परभावनुं भेदज्ञान
तेणे स्वानुभवथी जाणी लीधुं छे. अंदरमां जे बाह्य तरफनी शुभ के अशुभ लागणीओ
ऊठे छे ते हुं नथी, तेना वेदनमां मारी शांति नथी, हुं तो ज्ञानानंद छुं–के जेना वेदनमां
मने शांति अनुभवाय छे,– आम अंतरना वेदनमां ते समकितीने भेदज्ञान तथा
शुद्धात्मप्रतीति वर्ते छे. शुद्धात्माथी विरुद्ध कोई भावमां तेने कदी आत्मबुद्धि थती नथी.
ज्यारथी सम्यग्दर्शन थयुं त्यारथी ज्ञान आ रीते रागथी जुदुं काम करवा मांडयुं, माटे
सम्यग्द्रष्टि जे कांई जाणे ते बधुं सम्यग्ज्ञान छे एक कह्युं. ज्ञाननो उघाड थोडो होय के
झाझो एना उपर कांई सम्यक्–मिथ्यापणानुं माप नथी, पण ए ज्ञान कई तरफ कार्य करे
छे, शेमां तन्मयपणे वर्ते छे एना उपर तेना सम्यक्–मिथ्यापणानुं माप छे. जो
स्वभावमां तन्मय वर्ततुं होय तो सम्यक् छे, परभावमां तन्यम वर्ततुं होय तो मिथ्या
छे. ज्ञानीनो उपयोग परने जाणवामां वर्ततो होय तेथी एम न समजवुं के त्यारे तेनो
उपयोग परमां तन्मय थई गयो छे; ए वखतेय अंतरना भानमां उपयोग परथी छूटो
ने छूटो वर्ते छे. स्वमां तन्मयतानी बुद्धि ए वखतेय एने छूटी नथी. आ तो ज्ञानीना
अंतरनी अलौकिक वस्तु छे, एनां माप बहारथी समजाई जाय तेवा नथी. शुभ–अशुभ
परिणामद्वारा पण एनां माप नीकळे एवा नथी अंर्तद्रष्टि शुं काम करे छे एनुं माप
अंर्तद्रष्टिथी ज समजाय तेवुं छे.
अरे भाई, एकवार आ वात लक्षमां तो ले, तो तारो उत्साह पर तरफथी
ऊतरी जशे ने तने स्वभावनो उत्साह जागशे. मूळ स्वभावनुं ज्ञान करवुं ए ज
मोक्षमार्गमां प्रयोजनरूप छे.
कोई कहे छे–‘धर्मी थयो ने आत्माने जाण्यो एटले परनुं पण बधुंय जाणपणुं
तेने थई जाय.’ तो कहे छे के ना. परने बधायने जाणी ज ल्यो एवो नियम नथी
ज्ञाननो उघाड होय ते अनुसार जाणे; ते कदाचित ते प्रकारनो उघाड न होवाना कारणे,
दोरीने सर्प ईत्यादि प्रकारे अन्यथा जाणे तोपण दोरी के सर्प बंनेथी जुदो हुं तो ज्ञान
छुं–एवुं स्व–परनी भिन्नतानुं ज्ञान तो तेने यथार्थ ज रहे छे, ते खसतुं नथी. दोरीने
दोरी जाणी होत तोपण तेनाथी हुं जुदो छुं–एम जाणत, अने दोरीने सर्प जाण्यो तोपण
तेनाथी हुं जुदो छुं–एम जाणे छे, एटले स्व–परनी भिन्नता जाणवारूप सम्यक्पणामां
तो कांई फेर पड्यो नथी. आत्मानुं जाणपणुं थाय एटले परनुं जाणपणुं