Atmadharma magazine - Ank 259
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ६८ : आत्मधर्म : वैशाख :
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चैत्र सुद १३–४–६प मंगळवार: सवारमां सीमंधरनाथना अने महावीर
भगवानना मंगल दर्शन–पूजन करीने सोनगढथी प्रस्थान करी गुरुदेव राजकोट
पधार्या.
गुरुदेव राजकोट शहेरमां पधारतां, महावीर भगवाननी रथयात्रा सहित
भव्य स्वागत थयुं. केसरी साडीथी सज्ज ७६ बहेनो ७६ मंगल कलश सहित
स्वागतने शोभावता हता. स्वागत गीत अने स्वागत प्रवचन बाद
मंगलाचरणमां भावभीना रंगथी गुरुदेवे कह्युं के हे जिनेश्वरदेव! आपना मार्गनो
मने रंग लाग्यो, आपना कहेला मार्गने एटले आपना जेवा शुद्धआत्माने साधवा
हुं रंगथी जाग्यो, तेमां हवे भंग पडवानो नथी; जेवा तीर्थंकरो छे तेवो ज हुं छुं–
एम प्रतीत करीने शुद्धआत्मा सिवाय बीजाने मनमां लावुं नहि, शुद्धआत्मा
सिवाय बीजानो प्रेम करुं नहि–आवी अमारी टेक छे. आम ओळखीने हे नाथ! हुं
आपनुं मंगल–स्वागत करुं छुं, हे अनंता सिद्धभगवंतो! मारा ज्ञानमां मोटा
सिद्धभगवंतोने पधरावीने स्वागत करुं छुं, एटले के ज्ञानने शुद्धआत्मा तरफ
वाळीने आपनुं स्वागत करुं छुं. जुओ, आम शुद्धआत्मानी धगश करीने तेनो
अनुभव करवो–एना जेवुं महान कार्य जगतमां बीजुं कोई नथी.
गुरुदेवनुं उमंगभर्युं प्रवचन, ने भगवानना स्वागतनी उल्लासकारी वात
सांभळतां हजारो श्रोताजनो आनंदित बन्या हता. आ प्रसंगे गुरुदेवना ७६मा
जन्मोत्सवनी तैयारी तथा पंचकल्याणक महोत्सवनी तैयारीथी उल्लासपूर्ण
वातावरण प्रसरी रह्युं हतुं. जिनमंदिरनी बाजुमां भव्य समवसरण मंदिर बंधाई
रह्युं छे ने सामे प४ फूट ऊंचो रळियामणो मानस्थंभ छे. बंनेमां श्री
जिनेन्द्रभगवंतोनी प्रतिष्ठाना भव्यमहोत्सव माटे जिनमंदिरनी सामे विशाळ
सुसज्जित मंडप भव्य प्रवेशद्वार सहित शोभी रह्यो छे: एनुं नाम हतुं
सीमंधरनगर.