Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ: आत्मधर्म :७:
तेथी तेमने घणो आनंद थयो हतो.
बपोरे प्रवचन पछी जिनमंदिरमां भक्ति तथा सांजे ७६ दीपकोथी आरति थई
हती. रात्रे बालिकाओए जन्मोत्सव–प्रसंगने लगतुं आनंद–नाटक कर्युं हतुं; आ नाटक
द्वारा गुरुदेवना जीवनप्रसंगोनी झांखी थती हती, खास करीने उमराळानां द्रश्यो सौने
आनंद उपजावता हता. संवादमां राजकोटनी प६ जेटली नानी नानी बाळाओए सुंदर
कार्य कर्युं हतुं. ए रीते गुरुदेवनो ७६मो जन्मोत्सव राजकोटमां आनंदथी उजवायो हतो.
वैशाख सुद त्रीजे: प्रवचन पछी, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव निमित्ते
वीस विहरमान–तीर्थंकर–मंडलविधानपूजननो प्रारंभ थयो हतो, ने वैशाख सुद चोथ
(ता. प)नी सांजे जिनेन्द्रदेवना अभिषेकपूर्वक मंडलविधाननी पूर्णता थई हती.
वैशाख सुद ६ (ता. ६) नी प्रभाते मृत्तिकानयननी विधि थई हती. त्यारपछी
तुरत भगवान जिनेन्द्रदेवनी पधरामणी सहित प्रतिष्ठामंडपमां जैन–झंडारोपण थयुं
हतुं. सीमंधरनगरना खुशखुशाल वातावरणमां सोनेरी सूर्यकिरणो वच्चे जैनधर्मध्वज
३१ फूट ऊंचे फरकी रह्यो हतो. गुरुदेवना प्रवचन बाद जलयात्रानुं सरघस नीकळ्‌युं हतु.
बपोरे चोवीसतीर्थंकरोना मंगल–पूजनपूर्वक अंकुरारोपणनी विधि थई हती. रात्रे
फिल्मद्वारा सोनगढना मानस्तंभ–प्रतिष्ठा महोत्सवनां द्रश्यो बताववामां आव्या
हतां....सोनगढ प्रतिष्ठामहोत्सवनां ए द्रश्यो जोईने आनंद थयो हतो.
वैशाख सुद सातम (ता. ७) नी सवारमां आचार्य अनुज्ञा विधानपूर्वक प्रतिष्ठा
महोत्सवनो मंगल प्रारंभ थयो हतो. ११ ईन्द्रईन्द्राणीनी तथा कुबेरनी स्थापना थई
हती ने ईन्द्रप्रतिष्ठानुं भव्य सरघस नीकळ्‌युं हतुं; मुख्य ईन्द्रो हाथी उपर हता; तथा
बीजा अनेक सजधजथी सरघस शोभतुं हतुं. छप्पन कुमारिकाओ पण ए मोटा रथमां
साथे हती. सांजे ईन्द्रोद्वारा थतुं “यागमंडल पूजन विधान” थयुं हतुं. जेमा चार मंगळ–
उत्तम–शरणरूप अरिहंतादि परमेष्ठी भगवंतोनुं, त्रण चोवीसीना तीर्थंकरोनुं वीस
विहरमान तीर्थंकरोनुं, आचार्य–उपाध्याय–साधुनुं तेमज ऋद्धिधारी मुनिवरोनुं पूजन
करवामां आव्युं हतुं. ते उपरांत जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य ने जिनचैत्यालनुं पूजन
करवामां आव्युं हतुं. रात्रे कुमारिका बहेनोद्वारा आदिनाथ प्रभुनी मंगल स्तुतिपूर्वक
पंच कल्याणकनां द्रश्योनो प्रारंभ थयो हतो. पहेलुं द्रश्य सर्वार्थसिद्धि–विमाननुं हतुं–जेमां
भगवान आदिनाथनो जीव देवपर्यायमां छे ने सर्वार्थसिद्धिना देवो चर्चा करे छे ते
भावोनुं द्रश्य हतुं.
त्यारपछीनुं द्रश्य ईन्द्रदरबारनुं हतुं, आदिनाथप्रभुना गर्भकल्याणक प्रसंगे ईन्द्र
कुबेरने अयोध्यानगरीनी रचना करवानी आज्ञा करे छे, धनद कुमारिका देवीओने
माताजीनी