Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ८: आत्मधर्म :जेठ:
सेवामां मोकले छे, तीर्थंकरना अवतरणनो आनंद मनावे छे; त्रीजुं द्रश्य हतुं
अयोध्याना राजदरबारनुं, जेमां नाभिराजा अने मरूदेवी माता बिराजमान छे.
(माता–पिता तरीकेनी स्थापनानुं सौभाग्य श्री प्रभुलालभाई त्था तेमना धर्मपत्नी
श्री शान्ताबेनने प्राप्त थयुं हतुं.) माताने ६ मंगलस्वप्नपूर्वक तीर्थंकरना उदरागमननी
आगाही थाय छे. बीजे दिवसे (ता. ८) सवारमां ईन्द्रसभा, राजदरबार, तथा १६
मंगलस्वप्नोनुं फळवर्णन, देवीओ द्वारा माताजीनी सेवा तथा प्रश्नोत्तर वगेरे द्रश्यो थया
हता. ईंदोरना प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री नाथुलालजी शास्त्री दरेक विधि ने दरेक प्रसंगोनुं
सुंदर शैलीथी विवेचन करीने समजावता हता. अजमेरनी भजनमंडळ पण आवी गई
हती ने नृत्य–भजन–संगीत–द्वारा दरेक प्रसंगने शोभावती हती.
वैशाख सुद ९ रविवारे: (ता. ९) आजे सवारमां भगवान आदिनाथ प्रभुनो
अवतार थतां सर्वत्र जन्मकल्याणकना आनंदनो कोलाहल छवाई गयो. आजे राजकोट
तो अयोध्यानगरी बन्युं, अने आजनो दिवस जाणे चैत्र वद नोमनो ज हतो. ईन्द्रराज
ऐरावत हाथी लईने भगवाननो जन्मोत्सव करवा आवी पहोंच्या. नाभिराजाना
दरबारमां ऋषभजन्मनी मंगल वधाई आवतां मोटी राजसभा आनंदोत्सव करवा
लागी; छप्पन कुमारिका देवीओ मंगल वधाई गावा लागी. शची ईन्द्रिाणीए
आनंदोल्लासथी बाल तीर्थंकरने तेडया ने सौधर्मईन्द्रे हर्षोल्लासथी हजारनेत्रे
भगवानने नीहाळ्‌या....ने हाथी उपर बिराजमान कर्या. (सौधर्मेन्द्र तथा शची ईन्द्राणी
थवानुं सौभाग्य भाईश्री रतिलाल मोहनलाल घीया तथा तेमना धर्मपत्नी
शारदाबेनने प्राप्त थयुं हतुं.) जन्मोत्सवनी भव्य सवारी मेरु तरफ चाली. ए
बालतीर्थंकरने देखीदेखीने हजारो नगरजनो हर्षित थया. पू. गुरुदेव पण जन्मोत्सवनी
आखी सवारीमां साथे ज हता ने तीर्थंकर भगवानना कल्याणकना प्रसंगो देखीने
प्रसन्न थता हता. मेरु उपर हजारो भक्तोना हर्षानंद वच्चे ईन्द्र वगेरेए १००८
कलशोथी जिनाभिषेक कर्यो. अहो, चैतन्यनी साधना पूर्ण करवा तीर्थंकरनो आ अंतिम
अवतार छे, चैतन्यनी साधना पूर्ण करीने जगतना असंख्य जीवोने आत्म साधननो
मार्ग प्रकाशित करशे.–एवा तीर्थंकरना जन्माभिषेकनां द्रश्यो भक्त–हृदयमां
जिनेन्द्रमहिमा प्रगटावता हता. अभिषेकबाद दैवी वस्त्राभूषणोथी सुसज्ज ए
बालतीर्थं– करनी सवारी पुन: सीमंधरनगरनी अयोध्या नगरीमां आवी पहोची, ने
ईन्द्रोए तांडव नृत्यथी आनंद व्यक्त कर्यो बपोरे प्रवचनमां पण गुरुदेवे भगवानना
जन्मनो महिमा बतावीने, अध्यात्मिक रीते आत्मानी पर्यायमां भगवाननो अवतार
केम थाय–ते समजाव्युं हतुं.
प्रवचन बाद भगवान ऋषभकुमारनुं पारणाझुलन थयुं हतुं; पारणीये झूली
रहेला ए बालतीर्थंकरने देखीदेखीने भक्तजनो आनंदथी नाची ऊठता हता. रात्रे
नाभिराजाना राजदरबारमां ऋषभकुमारनो राज्या–