: जेठ: आत्मधर्म :९:
भिषेक थयो हतो; देशोदेशना अनेक राजाओए भेट धरी हती.
(वै. सु १० ता. १०) आजे सवारमां भगवान ऋषभदेवना वैराग्यनुं द्रश्य
थयुं हतुं. चैत्र वद नोम–ए भगवानना जन्मकल्याणकनो दिवस हतो; ईन्द्र–देवदेवीओ
राजसभामां नृत्य–भक्ति करी रह्या छे; नीलंजसादेवी हावभावथी प्रभुसन्मुख भक्ति
व्यक्त करी रही छे, त्यां नृत्य करतां करतां ज तेनुं आयुष्य पूर्ण थतां ते अद्रश्य बनी
जाय छे ने तेना स्थाने तेना जेवी ज बीजी देव आवीने नृत्य करे छे. भगवानना
सूक्ष्मज्ञानमां ए वात छूपी रहेती नथी, ने संसारनी आवी क्षणभंगुरता देखीने तरत
भगवान संसारथी विरक्त थाय छे. जातिस्मरणज्ञान थाय छे, बार वैराग्य भावना
भावे छे, लोकांतिकदेवो आवीने स्तुतिपूर्वक भगवानना वैराग्यनी अनुमोदना करे छे;
ईन्द्रो दीक्षाकल्याणक उजववा आवे छे. दीक्षाप्रसंगना मंगल अभिषेक बाद भगवाननी
दीक्षायात्रा शरू थाय छे. शरूआतमां राजवीओ पछी विद्याधरो ने पछी देवो प्रभुनी
पालखी उपाडे छे. प्रभुनी साथे दीक्षा–यात्रामां हजारो नरनारीओनो समूह भगवानना
वैराग्यनी अनुमोदना करतो ने ते धन्यदशानी भावना भावतो जई रह्यो हता. प्रभु
आदिनाथनी दीक्षायात्रामां पू. कहानगुरु पण ठेठ सुधी साथे हता. दीक्षावन (ज्युबिली
गार्डन) मां प्रभुनी दीक्षाना भावभीनां द्रश्यो अलौकिक वातावरण खडुं करता हता,
राजकोट जेवा शहेरनी मध्यमां होवा छतां दुन्यवी वातावरणथी दूर–दूर कोई प्रशांत–
वनमां मुनिराजनी समीप बेठा होईए एवुं घेरुं वातावरण हतुं. आवा वातावरण
वच्चे दीक्षाकल्याणक बाद प्रवचनमां पू. गुरुदेवे ए मुनिदशानुं स्वरूप समजाव्युं ने ए
धन्यदशानी भावना उल्लसावी दीक्षाविधि बाद चार ज्ञानधारी प्रभु तो वनमां विचरी
गया, ने भक्तजनो नगरीमां पाछा फर्यो. बपोरे ए ऋषभमुनिराजना दर्शनथी सौने
आनंद थयो ने मुनिभक्ति करी. रात्रे भगवान श्री आदि– नाथप्रभुना दस पूर्वभवोनां
द्रश्यो सहित पं. श्री नाथुलालजी शास्त्रीए विवेचन कर्युं हतुं. जेमां पूर्वना आहारदान
वगेरे प्रसंगोनां भक्तिभीनां द्रश्यो जोतां आनंद थतो हतो. त्यार– बाद भरत अने
बाहुबली संबंधी संवाद नाटकरूपे रजु करवामां आव्यो हतो.
(ता. ११ वै. सु. ११) आजे सवारे श्री ऋषभमुनिराजना आहारदाननो
प्रसंग आनंदपूर्वक बन्यो हतो. आहारदाननो लाभ शेठ श्री मोहनलाल कानजीभाई
धीयाने मळ्यो हतो. एक वर्ष उपरांतनी तपस्या बाद आजे भगवाने प्रथमवार
आहारग्रहण कर्युं ने असंख्यवर्षो बाद श्रेयांसराजाना सुहस्ते मुनिना आहारदाननो
मार्ग आ भरतक्षे्रत्रमां खूल्यो, ए धन्य प्रसंगोना स्मरणथी हर्ष थतो हतो. धन्य ए
आहार लेनार मोक्षमार्गी मुनिराज; ने धन्य ए दातार श्रेयांसराय.–आठ आठ भवना
ए साथीदार हता. आहारदान पछी अत्यंत हर्षपूर्वक ए मुनिराजनी साथे साथे जईने
भक्तजनोए घणा भावपूर्वक