: १०: आत्मधर्म :जेठ:
भक्ति करी.
बपोरे प्रतिष्ठा संबंधी विधिमां महत्वपूर्ण एवी जिनप्रतिमा उपर
अंकन्यासविधि थई. तेमां पू. गुरुदेवना सुहस्ते पण जिनप्रतिमाओ उपर मंत्राक्षरो
लखवानी विधि देखीने सौने घणो हर्ष थयो. घणा भक्तिभावथी प्रसन्नतापूर्वक गुरुदेवे
कुल १९ जिनबिंबो उपर अंकन्यासविधान कर्युं; ए वखते श्री जिनेन्द्रदेवना
जयजयकारथी वातावरण गाजी रह्युं.
अंकन्यास बाद बपोरे श्री जिनेन्द्र भगवंतोने केवळज्ञान थयुं. घंटनाद गाजी
उठया, सुंदर समवसरण रचाया ने ईन्द्र वगेरेए केवळज्ञान–कल्याणकनी पूजा करी.
प्रयाग एटले विशिष्ट पूजन: ज्यां भगवानने केवळज्ञान थयुं ने ईन्द्रओ विशिष्ट पूजन
कर्यूं ते स्थान ‘प्रयाग’ तरीके जगतमां प्रसिद्ध थयुं; आजे पण ते एक महान तीर्थ
गणाय छे. समवसरण वच्चे गंधकूटी उपर बिराजमान श्री तीर्थंकरदेवने नीहाळतां
भक्तजनो आनंदित थया हता. समवसरणमां दिव्यध्वनिथी भगवाने शुं उपदेश आप्यो
ते गुरुदेवे प्रवचनमां समजाव्युं हतुं. प्रवचन बाद समवसरण–सन्मुख भक्ति–पूजन
थया; रात्रे भक्तिनो विविध कार्यक्रम हतो, तथा वैरागी भरत, नमि–विनमि वगेरे
संबंधी केटलाक द्रश्यो थया हता.
वैशाख सुद १२ (ता. १२) बुधवार: सवारमां कैलासगिरि उपर बिराजमान
योगनिरोधसन्मुख भगवान आदिनाथप्रभुना दर्शन थया. पछी प्रभु १४मा गुणस्थाने
देखाया....ने थोडी ज वारमां तो भगवान चर्मचक्षुथी अद्रश्य थईने सिद्धालयमां
सिधाव्या. कैलासतीर्थ परथी प्रभु मोक्ष पधार्या. ने ईन्द्रोए आवीने भगवाननो
मोक्षकल्याणक उजव्यो, सिद्धक्षेत्र कैलासधामनुं पूजन कर्युं. अनेक जिनलयोथी
कैलासपर्वत शोभतो हतो. आम आनंदमंगलपूर्वक जिनेन्द्रभगवानना पंचकल्याणक
पूर्ण थया......गुरुदेवना महान प्रभावना उदयथी जैनधर्मना जयजयकार सर्वत्र गुंजी
रह्या.
प्रतिष्ठित थयेला सीमंधरनाथप्रभुना जिनबिंबोने अतिशय भक्तिपूर्वक
समवसरणमां तथा मानस्तंभ उपर पधराववामां आव्या. ने बराबर सात वागता
गुरुदेवे अने अनेक भक्तजनोए अतिशय भक्तिपूर्वक श्री जिनेन्द्र भगवंतोने वेदी
उपर बिराजमान कर्या. समवसरणमां चौमुखी सीमंधरनाथ बिराज्या ने ए
समवसरण शोभी ऊठयुं समवसरणनी लगभग बधी ज रचना आरसनी छे.
त्यारबाद प४ फूट ऊंचा मानस्तंभमां चारे दिशामां (उपर ४ तथा नीचे ४) सीमंधर
भगवान बिराजता ए उन्नत मानस्तंभ पण जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठानी विधिमां
गुरुदेव घणा हर्षोल्लासथी भाग लेता हता. ने परम जिनभक्तिपूर्वक प्रभुजीने
पधरावता हता. हजारो भक्तोना हैया हर्ष अने भक्तिथी उल्लसी रह्या हता. अने
भक्तो मानस्तंभ उपर जई भक्ति करता ने यात्रा जेवो आनंद अनुभवता.