: जेठ: आत्मधर्म :२३:
आत्माना सहज स्वभावमां विकारनुं कर्तृत्व मानीने
अ ज्ञा नी ब ला त्का र करे छे
हे जीव! तुं मोटो परमात्मा; तारो स्वभाव मोटो ने तारी भूल
पण मोटी; तुं ज तारा बळथी तारी भूल तोड तो ते
तूटे; भूल मोटी ने ते भूल भांगीने सम्यक् स्वभावनुं
भान करतां तेनो लाभ पण घणो मोटो छे.
आत्मानो स्वभाव गंभीर छे, रागना विकल्पथी जेनी गंभीरतानो पार न
पमाय, स्वानुभवथी ज जेनो पार पमाय एवो गंभीर आत्मस्वभाव छे. पण आवा
स्वभावने भूलेलो अज्ञानी बलात्कारथी रागादि परभावोनो कर्ता थाय छे.
‘बलात्कारथी कर्ता थाय छे एटले शुं? के पोताना सहज स्वभावमां तो रागादिनुं कर्तृत्व
नथी, छतां अज्ञानथी बलात्कार वडे शुभाशुभभावोनुं कर्तृत्व आत्माना स्वभावमां
माने छे. सहज स्वभावमां जे वस्तु नथी तेनुं कर्तापणुं बलात्कारथी अज्ञानी ऊभुं करे
छे.
अरे जीव! तारा सहज स्वरूपमां शुं रागादि परभावो छे? ना, तारो सहज
स्वभाव तो चैतन्यसूर्य छे. तेमां रागादिनुं कर्तृत्व जरापण नथी. ज्ञानद्वारा एनुं वेदन
करतां सहज अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे. ‘राग मारुं कार्य ने हुं ज्ञानस्वरूप
आत्मा ते रागनो कर्ता एवी एकत्वबुद्धिरूप कर्तृत्व वडे आत्माना सहज आनंदनुं वेदन
लूंटाय छे, एटले ते कर्तृत्वबुद्धिथी आत्मा उपर बलात्कार थाय छे; एना स्वभावमां जे
नथी ते पराणे (अज्ञानथी) तेमां घूसाडवुं–ते बलात्कार छे, तेमां आकुळता छे, दुःख छे,
संसार छे.
आत्मा परथी अत्यंत छूटो, कर्तृत्वनी उपाधि वगरनो छे, छतां अज्ञानी तेना
उपर पराणे पराणे परना कर्तृत्वनो आरोप नांखे छे. अरे, परथी तद्न जुदो, सहज
स्वभाव, तेमां वळी ज्ञान सिवाय बीजा शेनुं कर्तृत्व होय? ज्ञानकार्यमां भेगुं विकारनुं
कार्य क्यांथी आवी गयुं? ने परनुं कार्य तेनामां केवुं? भाई, तारा आत्माने आवी
कर्तृत्वबुद्धिथी छोडाव, ने शुद्धज्ञाननी भावना कर. हुं तो शुद्धज्ञान छुं, मारा शुद्धज्ञानमां
विकार साथे तन्मयता नथी ने पर साथे संबंध नथी;–आवा आत्माने ज्यांसुधी जीव
नथी जाणतो त्यांसुधी ऊंधाईथी विकारना कर्तृत्वपणे परिणमतो थको अज्ञानी रखडे छे;
पोते ज पोताना आत्मा उपर बलात्कार करीने पोताने दुःखी करी रह्यो छे.
अरे प्रभो! तुं चैतन्यमूर्ति शुद्ध आत्मा.....अने.....विकारना कर्तृत्वमां रोकाई