Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २२: आत्मधर्म :जेठ:
भगवान कहे छे के, स्वभावनो अनुभवशीली जीव परम सुखी छे. प्रचुर
स्वसंवेदन– रूप आत्मवैभव मुनिओने प्रगट्यो छे. स्वसंवेदनमां प्रचुर आनंदना
ऊछाळा ऊछळे छे. अहाहा, धन्य अवतार! एना आनंदनो पार नथी; ए तो जाणे
परमात्मा, ने चालता सिद्ध! मुनिदशाना परम आनंदनी अज्ञानीने गंध पण नथी,
आत्माना अनुभव वगरनो अज्ञानी विकल्पना भारथी एकलो दुःखी छे. आत्मानो
अनुभव करवो ते भगवाननी दिव्यवाणीनो उपदेश छे. भगवान आत्मा
अनुभवप्रत्यक्ष छे, तेने विकल्प वगरनुं भावश्रुत प्रत्यक्ष अनुभवे छे. विकल्पात्मक
ज्ञानवडे ते अनुभवमां आवतो नथी.
ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं ने स्वानुभव थयो त्यां मोक्ष तरफ परिणमन ढळ्‌युं एटले
ते मुक्त ज थाय छे एम कह्युं छे: ‘शुद्धस्वरूप लक्षण सम्यक्त्वगुणके प्रगट होने पर
मुक्त होता है,–ऐसा द्रव्यका परिणाम है’–शुद्धस्वरूपनो अनुभव करतां जीववस्तु
सदाय मुक्तस्वरूप छे एम अनुभवमां आवे छे. आवी शुद्धवस्तुने जाणवी अनुभववी
ते भगवाननो उपदेश छे. मुक्तिना पायानी पहेली शिला तो सम्यग्दर्शन छे;
सम्यग्दर्शनरूपी मंगलस्तंभ आत्मामां राप्यो तेणे मोक्ष माटेनी तैयारी करी. अहो,
सम्यग्दर्शनना एक क्षणना आनंद पासे जगतना वैभव बधा तूच्छ छे, सम्यग्दर्शन थतां
आत्मामां मोक्षनां नगारां वाग्या.
घणो धीरो था.....धीरो थईने अंतरमां जो.....तो तारा आत्मामां शांतरसनो
समुद्र भर्यो छे; ए शांतरसना समुद्रमां उदयभाव रूप मेल नथी; विकल्पनी आकुळता
तेमां नथी. आवो परम गंभीर ज्ञानसमुद्र तेनो अनुभव विकल्पवाळा ज्ञानवडे थतो
नथी पण अनुभवज्ञान वडे ज थाय छे. अनुभवज्ञान पण छे तो श्रुतज्ञान; पण जे
श्रुतज्ञान विकल्पना विचारमां अटके छे तेमां तो आकुळता छे, तेमां आत्मानी शांतिनो
अनुभव थतो नथी. ज्ञान विकल्पथी खसीने आत्मस्वभाव तरफ ढळे एवा
आत्मज्ञानवडे निर्विकल्प आनंदमय आत्मानो साक्षात् अनुभव थाय छे. जे श्रुतमां
आत्मानो अनुभव नथी तेने विकल्परूप द्रव्यश्रुतमां ज गण्युं छे. विकल्प वगरनुं जे
ज्ञान छे ते आत्माने प्रत्यक्ष अनुभवे छे, ने ते ज्ञानने ज खरेखर ज्ञान कहेवाय छे.
आवुं ज्ञान ईन्द्रियोथी पार, रागथी पार, तेना वडे शुद्धआत्मानी अनुभूति प्रगट करवी
ते भगवाननो मार्ग छे.
भगवाननो मार्ग सोंघो पण छे ने मोंघो पण छे; स्वानुभवद्वारा सोंघो छे. ने
विकल्पद्वारा प्राप्त न थाय एवो मोंघो छे. आत्मा निजस्वरूपमां आवतां विकल्पो
शमाई जाय छे. आवो अनुभव चोथा गुणस्थाने चारे गतिना जीवो पामी शके छे.
भगवाननो उपदेश सांभळतां अंतरमां उतरीने अनेक जीवो आवा धर्मने पाम्या ने
धर्मवृद्धि थई.