: जेठ : आत्मधर्म : २१ :
सर्वज्ञनो सन्देश
राजकोट शहेरमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे
भगवानश्री आदिनाथ प्रभुना केवळज्ञानकल्याणक बाद,
दिव्यध्वनिमां भगवाने शुं कह्युं तेना साररूपे पू. गुरुदेवनुं प्रवचन.
(वै. सुद ११)
भगवान ऋषभदेव परमात्माने आज केवळज्ञान थयुं; ईन्द्रोए समवसरणनी
रचना करी; ते समवसरणमां “ एवा दिव्यध्वनिद्वारा भगवाने उपदेश आप्यो. सहज,
ईच्छा विना भगवाननी दिव्यवाणी नीकळी, ते वाणीमां भगवाने शुं कह्युं?
आ जीव नामनो पदार्थ देहथी अत्यंत जुदो छे; तेनुं शुद्धस्वरूप विकल्प वगरनुं
छे. ‘आत्मा शुद्ध छे’ एवा विकल्पथी पण शुद्धतत्त्व अनुभवमां आवतुं नथी, माटे एवा
विकल्पोथी पण बस थाओ.
एक देखिये जाणीए,
रमी रहीए ईक ठोर,
समल–विमल न विचारीए,
यही सिद्धि, नहि और.
जुओ, आ भगवाने कहेलो मोक्षमार्ग. विकल्पवडे आ मार्ग सधातो नथी.
महा आनंदनुं धाम चैतन्यसत्ता अंतरमां छे. तेमां लीन थईने भगवाने
केवळज्ञान साध्युं. आवा आनंदधाम आत्माने ओळखीने तेने एकने ज अनुभववामां
लीन रहेवुं ने बीजा भेदना विकल्प न उठवा–ते ज सिद्धि छे, अथवा ते ज भगवाने
कहेलो मोक्षमार्ग छे.
जडथी भिन्न वस्तु आत्मा, ते जडना कार्यमां शुं करे? जडमां तो आत्मानुं कांई
कर्तृत्व छे ज नहि. ने पोतानी अवस्था पण बीजाथी थती नथी.–आवी स्वतंत्रता भगवाने
बतावी. स्वतंत्र वस्तु पोताना अनंत गुणोथी परिपूर्ण छे. आवी वस्तु विकारने गम्य
नथी. भेदना विकल्पथी पण अगम्य एवो आत्मा छे ते स्वानुभवगम्य छे.
भाई, तारी सत् वस्तु अंतरमां जेवी छे तेवी तें कदी लक्षमां लीधी नथी. ए
चैतन्य– वस्तुना वेदनमां साक्षात् अमृत छे. राग तो आकुळता ने दुःख छे. पोतामां भेद
पाडीने द्रव्य–गुण–पर्याय वगेरेना विचारमां रोकाय तेमां पण राग छे, आकुळता छे, ने
दुःख छे, त्यां परनी चिंतानी वात तो क््यां रही? भेदना विचारथी पार थईने द्रव्य–गुण–
पर्यायथी अभेद वस्तुने साक्षात् अनुभवतां विकल्प मटी जाय छे ने निर्विकल्प
अनुभवरस अनुभवाय छे. आवा सत्ना मंत्रो भगवाने दिव्यध्वनिमां कह्यां छे. आवी
वाणी सांभळतां अनेक जीवो तेनुं रहस्य समजीने आत्मानो अनुभव पाम्या. चार
तीर्थोनी स्थापना थई; ने मोक्षगतिनो भरतक्षेत्रमां असंख्य वर्ष बाद प्रारंभ थयो.