Atmadharma magazine - Ank 260
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २०: आत्मधर्म :जेठ:
भगवाने पृथ्वीनुं राज छोडीने दीक्षा लीधी तेना वर्णनमां शास्त्रकार अलंकारथी
कहे छे के हे नाथ! आपना वियोगमां आ पृथ्वी उदास थईने रडे छे. पोताने
भगवाननो विरह छे तेनो आरोप करीने कहे छे के प्रभो! आपे दीक्षा लईने आ
पृथ्वीने छोडी त्यां जगतमां वैराग्य छवाई गयो छे! अरे, नदी पण कलकल अवाज
करीने रूदन करे छे, आ पृथ्वी आपना वियोगे अनाथ बनी छे. ते पाणीना प्रवाहना
बहाने कलरव अवाज करीने जाणे रडी रही होय–एम अमने लागे छे. अने आकाशमां
वादळां जोतां जाणे के आपना ध्यानाग्निवडे भस्म थयेला कर्मोना धूमाडाना गोटा
आकाशमां उडता होय–एम लागे छे. जुओ, ज्यां जुए त्यां भगवानना भक्तने
भगवाननी दशा याद आवे छे.
कुंदकुंदाचार्य भगवानना विरहे सीमंधरनाथना साक्षात् दर्शन करवा विदेहक्षेत्रे
गया. अंदर पोतानी सर्वज्ञदशाना विरहमां संतो चैतन्यमां लीन थईने सर्वज्ञताने साधे
छे. आत्मामां अपार शक्ति छे, तेमांथी सर्वज्ञपद प्रगटे छे. अहो, ए सर्वज्ञपदनी
भावना भाववा जेवी छे–
सर्वभाव ज्ञाताद्रष्टा सह शुद्धता
कृतकृत्य प्रभु वीर्य अनंत प्रकाश जो.
आवी सादिअनंत दशाने साधीने भगवान अनंत सुखमां बिराजमान थया.
मुनि थईने भगवाने शुं कर्युं? के अंतरमां चैतन्यस्वरूपमां लीनता करीने केवळज्ञान
साध्युं. आवा आत्माने ओळखीने दरेक जीवे एनी भावना भाववा जेवी छे.
जेने जेनी लगनी लागी तेना
उद्यममां ते काळनी मर्यादा बांधतो
नथी; तेना उद्यममां विलंब पण करतो
नथी. चैतन्यनी लगनी करीने तेनी
प्राप्तिना उद्यममां जे लाग्यो ते तेने
प्राप्त कर्ये ज छूटको. जेनी प्रीति लागी
तेनी प्राप्तिना प्रयत्नमां विलंब न
होय, के थाक न होय, काळनी मर्यादा न
होय; उत्साहथी तेना प्रयत्नमां
प्रवर्तीने तेनी प्राप्ति करे ज.