Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी
वर्ष २२: अंक १०: वीर सं. श्रावण: August 1965
सिद्धप्रभु साथे मित्रता
हे जीव! तारे संसारथी छूटवुं होय ने सिद्धपद पामवुं होय तो सिद्धप्रभु
साथे मैत्री कर....संसार साथे किट्टि कर ने सिद्धो साथे बिल्ली (मित्रता) कर.
सिद्धभगवान साथे मित्रता केम थाय? के ‘जेवा आप तेवो हुं’ एम सिद्ध
जेवा पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करतां आत्माने सिद्धनी मित्रता
थाय छे एटले के ते सिद्धपदनो साधक थाय छे. सिद्धभगवंतो कहे छे के जो तारे
मारी साथे मित्रता करवी होय ने मारी पासे सिद्धदशामां आववुं होय, तो तुं
रागनी मैत्री छोड; राग तो माराथी विरोधी छे, तेनो आदर करीश तो मारी
साथे मित्रता नहि थाय. मारी साथे मित्रता करवी होय तो मारामां न होय
एवा समस्त परभावोनी प्रीति छोडीने तेनी साथे किट्टा कर, तेनी साथे
आत्मानो संबंध तोड, ने मारा जेवो तारो स्वभाव छे तेमां संबंध जोड....अरे
जीव! संसारनो प्रेम छोडीने हवे आ सिद्धप्रभु साथे मित्रता कर. धर्मात्मा कहे
छे के अमे हवे सिद्धप्रभुना मित्र थया छीए; सिद्धप्रभु जेवा अमारा स्वभावने
अनुभवमां लईने अमे हवे सिद्धप्रभु साथे मित्रता बांधी छे ने समस्त
परभावो साथेनी मित्रता छोडी छे. हवे परभावोरूप संसारने छोडीने अमे
अल्पकाळमां सिद्ध थशुं, ने सिद्धालयमां जईने अमारा मित्रो साथे
सादिअनंतकाळ रहेशुं.
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