धर्मवात्सल्यनुं महान प्रतीक: रक्षाबंधन पर्व
(वात्सल्यपूर्णिमा: श्रावण सुद १प)
आजे समग्र जैनसमाजने जेनी खूब जरूर छे एवा वात्सल्यना अमीसींचन
करतुं महान जैन–पर्व श्रावण सुद पूर्णिमाए आवी रह्युं छे.....दर वर्षनी आ
वात्सल्यपूर्णिमा वखते जाणे साक्षात् विष्णुकुमार मुनिराज आवीने आपणने
वात्सल्यनो पुनित सन्देश संभळावी जाय छे. चक्रवर्तीना ए पुत्र राजपाट छोडी,
चैतन्यनी साधनामां एवा मस्त हता के महान विक्रियाऋद्धि प्रगटी होवा छतां तेनुं
लक्ष न हतुं. एमना सम्यक्त्वसूर्यनुं तेज वात्सल्यादि अष्टांगोथी झळकतुं हतुं. एवा
ए विष्णुकुमार मुनिराजनी जन्मनगरीमां ज्यारे अकंपनादि ७०० मुनिवरोना संघ
उपर चार मंत्रीओ द्वारा घोर उपद्रव थई रह्यो छे, मुनिवरो अकंपपणे
समाधिभावमां स्थित छे, घोर उपद्रवथी हस्तिनापुरीना समस्त श्रावकोए पण
अन्ननो त्याग कर्यो छे, ने आकाशना नक्षत्र पण धू्रजी ऊठे छे,–ए वखते
मिथिलापुरीमां श्रुतसागर आचार्य निमित्तज्ञानद्वारा मुनिवरोनो उपद्रव जाणे छे ने
तेमनुं हृदय मुनिसंघ प्रत्ये वत्सलताथी एवुं उभराई जाय छे, के रात्रिनुं मौन
तोडीने पण ‘हा!’ एवो उद्गार तेमना मुखमांथी सरी पडे छे. विष्णुमुनि वडे ज
आ उपद्रवथी मुनिओनी रक्षा थई शके एम छे ते जाणीने, एक क्षुल्लकजी तेमने
प्रार्थना करे छे. विष्णुमुनिराजने वात्सल्य उभराय छे....७०० मुनिओनी रक्षा
खातर पोते मुनिपणुं छोडी थोडीवार श्रावक बने छे, युक्तिथी बलिराजाने
वचनबद्ध करीने ७०० मुनिओनी रक्षा करे छे, एटलुं ज नहि, वत्सलताथी
बलिराजा वगेरेने पण धर्म पमाडीने तेमनोय उद्धार करे छे. हस्तिनापुरी
जयजयकारथी गाजी ऊठे छे, फरीने सर्वत्र आनंदमंगळ थाय छे; ने पोतानुं
मुनिरक्षानुं कार्य पूरुं करीने तरत विष्णुकुमार फरी पोताना मुनिपदमां स्थिर थाय
छे, ने एवी ऊग्र आत्मसाधना करे छे के केवळज्ञान प्रगट थाय छे.
मुनिरक्षानो ने वात्सल्यनो आ महान दिवस एवो प्रसिद्ध बन्यो के लाखो–
करोडो वर्षो वीतवा छतां आजेय भारतभरमां ते आनंदथी ऊजवाय छे. संसारमां
भाई–बहेननुं निर्दोष वात्सल्य ए वात्सल्यनुं सौथी मोटुं प्रतीक छे. वात्सल्य होय त्यां
रक्षानी भावना होय ज. आवुं आ वात्सल्यनुं पर्व सर्वत्र वात्सल्यना पूर वहावो.
धर्मवत्सल संतोने नमस्कार हो.