अर्थात् सम्यग्दर्शन सर्व लोकमां अत्यंत शोभायमान छे अने ते ज
मोक्षपर्यंत सुख देवामां समर्थ छे.
* ज्ञान अने चारित्रनुं बीज सम्यग्दर्शन ज छे, यम अने
प्रशमभावनुं जीवन सम्यग्दर्शन छे, अने तप तथा स्वाध्यायनो
आधार पण सम्यग्दर्शन ज छे एम आचार्योए कह्युं छे.
* विशेष ज्ञान के चारित्र न होय छतां, जो एकलुं मात्र सम्यग्दर्शन ज
होय तोपण ते प्रशंसनीय छे; परंतु मिथ्यादर्शनरूपी झेरथी दूषित
थयेला ज्ञान के चारित्र प्रशंसनीय नथी.
* सूत्रज्ञ आचार्यदेवोए कह्युं छे के यम–नियम–तप वगरे अति अल्प
होय तोपण, जो ते सम्यग्दर्शन सहित होय तो भवसमुद्रना कलेशना
भारने हळवो करवा माटेनी ते औषधि छे.
* श्री आचार्यदेव कहे छे के जेने दर्शनविशुद्धि थई गई छे ते पवित्र
आत्मा मुक्त ज छे–एम अमे जाणीए छीए केमके दर्शनशुद्धिने ज
मोक्षनुं मुख्य कारण कहेवामां आव्युं छे.
* आ जगतमां जेओ ज्ञान अने चारित्रना पालनमां प्रसिद्ध थया छे
एवा जीवो पण, सम्यग्दर्शन वगर मोक्षने पामी शकता नथी.
पीओ. आ सम्यग्दर्शन अनुपम सुखनो भंडार छे, सर्व कल्याणनुं बीज
छे, आ संसारसमुद्रथी तरवा माटे ते जहाज छे, एक भव्यजीवो ज तेने
पामी शके छे, पापरूपी वृक्षने कापवा माटे ते कुहाडी समान छे, पवित्र
तीर्थोमां ते प्रधान तीर्थ छे अने मिथ्यात्वने ते हणनार छे.