Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : श्रावण :
वगेरेनुं ज्ञान तेमने छे. महानबुद्धिना धारक आवा पुरुष आ काळ विषे होवा दुर्लभ छे.
प्रतिष्ठा महोत्सवनी निमंत्रण–पत्रिकामां थयेल आ उल्लेख उपरथी ख्यालमां आवशे के
जैनसमाजमां पंडितजीनुं स्थान केटलुं महत्त्वनुं हतुं, ने जयपुरनो जैनसमाज तेमनाथी
केटलुं गौरव अनुभवतो हतो.
अत्यारनी माफक झडपी प्रवासनां के सन्देशव्यवहारनां साधनो ते जमानामां न
हतां; एवा ए साधनहीन काळमां पण दक्षिणदेशना धवलादि सिद्धांत ग्रंथोना उद्धारनी
योजना पं. श्री टोडरमल्लजीए बनावी हती अने जयपुरथी केटलाक भाईओने त्यां
मोकल्या हता; तेमां बे हजार रूपीआ खर्च कर्या अने ए कार्यमां पांच वर्ष लाग्या;
तेमांथी एक व्यक्तिनुं तो त्यां ज (दक्षिणमां) मृत्यु थयुं; पण तेमां सफळता न मळी.
छतां पण श्रुतनी तीव्र भक्तिथी प्रयत्न चालु राख्यो. जो नानी वये तेमनुं अकाळ
अवसान थयुं न होत तो जरूर तेमना समयमां ज ते षट्खंडागम आदि ग्रंथो जयपुर
आवी गया होत. तोपण कर्णाटकलिपिमां ते ग्रंथ आव्या, तेने तेओ पढवा लाग्या अने
तेनी लिपि लखवा लाग्या,– ए केटली आश्चर्यनी वात छे.
उपरोक्त गोम्मटसारादि ग्रंथोनी टीका पछी तेमणे आत्मानुशासननी तथा पुरुषार्थ–
सिद्धि उपायनी हिन्दी टीका (जयपुरी ढूंढारी भाषामां) लखी, तेमज ‘मोक्षमार्ग प्रकाशक’
जेवा सर्वोपयोगी महत्वपूर्ण ग्रंथनी रचना करी. आ रीते श्रीमान पंडितजीए मोक्षमार्ग–
प्रकाशक–ग्रंथ वगेरे द्वारा शुद्ध जैनमार्गनो प्रकाश कर्यो, अने शिथिलाचार पाखंड तथा
असत्यमार्गनो निषेध करीने जे महान क्रान्ति करी, ते सहन नहि थवाथी केटलाक विद्वेषी–
विधर्मीओए षड्यंत्रद्वारा मोटो अत्याचार करेलो, एटलुं ज नहि, पंडितजी उपर खोटा
आक्षेप मुकीने छळकपटद्वारा राजाने तेमनी विरुद्ध उश्केर्या, जेना परिणामे तेमने हाथीना पग
नीचे कचडावीने मारी नांखवामां आव्या. (सं. १८२४ना कारतक सुद ७ ए तेमनो देहांत
दिवस गणाय छे) ते वखते तेमनी वय मात्र २७ वर्षनी हती. जैनगगननो एक झळकतो
सीतारो पूर्णपणे झळके त्यार पहेलां ज अस्तंगत थई गयो. छतां आटला टूंक आयुमां तेमणे
जैन साहित्यनी महत्वपूर्ण रचनाओ द्वारा श्रुतदेवीमातानी अने जैनसमाजनी घणी किंमती
सेवा करी छे. जयपुरमां तेमनी शास्त्रसभामां ८०० जेटला तत्त्वरसिक श्रोताओ थता;
गोम्मटसार वगेरे शास्त्रोनो अभ्यास शरू थयो हतो तथा महिलाओ पण तत्त्वचर्चामां रस
लेवा लागी हती. हालमां जयपुरमां गोदीकापरिवार तरफथी ‘श्री टोडरमल्लजी–स्मारक
भवन’ थई रह्युं छे ने ते भवनद्वारा आध्यात्मिक साहित्यना प्रचारनुं ध्येय अपनाववामां
आव्युं छे, ए हर्षनी वात छे. आवा अध्यात्मरसिक महान श्रुतोपासक अध्यात्मरसिक
श्रीमान पं. श्री टोडरमल्लजी संबंधी केटलोक परिचय आपणे अहीं कर्यो; एवा ज बीजा एक
अध्यात्मरसिक विद्वान पं. श्री बनारसीदासजीनो परिचय आगामी अंकमां करीशुं.