Atmadharma magazine - Ank 262
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 37

background image
: श्रावण : आत्मधर्म : ३१ :
मात्र १४ के १प वर्षनी तेमनी उमर हती. आवडी नानी उंमरमां तेमणे लखेली
अध्यात्मशास्त्रना मर्मथी भरेली चिठ्ठि बतावे छे के तेओ केटला विद्वान अने
अध्यात्मरसिक हता.
सं. १८११ नी आसपासमां एटले के १४–१प वर्षनी वये ज तेओ जयपुरराज्यना
सिधाणा गामे जईने एक शेठने त्यां नोकरी करवा लाग्या. ते दरमियान साधर्मी भाई
रायमल–के जेओ १३–१४ वर्षनी वयमां ज शास्त्राभ्यासी हता ने धर्मनुं रहस्य समजवानी
जिज्ञासाथी अनेक जग्याए घूमी रह्या हता, तेओ पं. टोडरमल्लजीने मळ्‌या, अने तेमना
परिचयथी प्रसन्न थईने तेमणे लख्युं के– ‘टोडरमल्लजीके ज्ञानकी महिमा अद्भुत देखी
त्यारबाद भाई रायमल्लजीए तेमने गोम्मटसार वगेरे शास्त्रोनी टीका लखवानो आग्रह
कर्यो, अने पं. श्री टोडरमल्लजीए हिन्दीभाषामां टीका लखवी शरू करी. टीका तेओ लखता
जता हता तेम तेम भाई रायमल्लजी वगेरे ते वांचता जता हता. सं. १८१प सुधीना त्रणेक
वर्षमां एटले मात्र १प थी १८ वर्षनी नानी वयमां तो तेमणे गोम्मटसारना ३८ हजार
श्लोक, लब्धिसार–क्षपणासारना १३ हजार श्लोक अने त्रिलोकसारना १४ हजार श्लोक, एम
कूल ६प००० पांसठ हजार श्लोक प्रमाण (सम्यग्ज्ञानचंद्रिका) टीका रची. मात्र १प वर्षनी
वये गोम्मटसार जेवा महान शास्त्रनी टीका लखवी ते श्रुताभ्यासनो असाधारण प्रेम अने
विद्वत्ता बतावे छे. भाई रायमल्लजी लखे छे के ‘अत्यारे आ कनिष्ट काळमां टोडरमल्लजीना
ज्ञाननो क्षयोपशम विशेष छे. गोम्मटसार ग्रंथनुं वांचन पांचसो वर्ष पहेलां हतुं पण
त्यारपछी बुद्धिनी मंदताने लीधे भावसहित वांचन अटकी गयुं; हवे फरी (टोडरमल्लजी
द्वारा) तेनो उद्योत थयो. वर्तमानकाळमां अहीं धर्मनुं निमित्त छे तेवुं अन्यत्र नथी.’
आ उपरथी स्पष्ट छे के पं. टोडरमल्लजी केटला प्रतिभाशाळी हता अने धर्मप्रचारनी
तेमने केटली लगन हती. ते वखते जयपुरमां ईन्द्रध्वजपूजानो मोटो उत्सह थयेलो, आ
उत्सव जयपुरना ईतिहासमां घणो भव्य हतो, तेमां चबूतरो (पूजननी वेदी) ६४ गज
(लगभग सवासो फूट) लांबो पहोळो हतो, (एटले अत्यारे पंचकल्याणकमां आपणे जेना
पर मंडल करीए छीए तेना करतां लगभग १०० गणो मोटो!) ने तेमां त्रिलोकसार–
ग्रंथअनुसार रचना करवामां आवीटीका हती. ए उत्सवनी निमंत्रण–पत्रिकामां (सं.
१८२१ ना माह वद नोमे) लख्युं छे के अहीं भाईजी टोडरमल्लजीना ज्ञाननो क्षयोपशम
अलौकिक छे, तेमणे गोम्मटसारादि अनेक ग्रंथोनी पूरा लाख श्लोकप्रमाण टीकाओ बनावी
छे, अने हजी बीजा पांच सात ग्रंथोनी टीका बनाववानो विचार छे, ते आयुनी अधिकता
हशे तो बनशे. वळी धवलमहाधवलादि ग्रंथोने प्रगटमां लाववानो उद्यम तेमणे कर्यो छे,
तथा ते दक्षिणदेशथी बीजा पांचसात ग्रंथो ताडपत्रमां कर्णाटकी लिपिमां लखेला अहीं पधार्या
छे तेने ‘मलजी’ वांचे छे. अने तेनुं यथार्थ व्याख्यान करे छे तेमज कर्णाटी लिपिमां लखी ल्ये
छे. ईत्यादि न्याय, व्याकरण, गणित, छंद, अलंकार