Atmadharma magazine - Ank 263
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : भादरवो :
(प०) प्रश्न:– सम्यग्दर्शनने सिद्धिनुं मूळ केम कह्युं? चारित्रने केम न कह्युं?
उत्तर:– चारित्रनो तो अपार महिमा छे, ते तो मोक्षनुं साक्षात् कारण छे. ते दशा तो
घणी वीतरागी ने महा आनंदरूप छे. पण, जेने सम्यग्दर्शन होय तेने ज आवी
चारित्रदशा प्रगटे छे. पहेलां आखाय आत्मस्वभावनो स्वीकार सम्यग्दर्शनवडे थाय छे;
सम्यग्दर्शनवडे आत्मस्वभावनो स्वीकार कर्या पछी ज तेमां लीनतारूप चारित्रदशा होय
छे; माटे सम्यग्दर्शनने सिद्धिनुं मूळ कह्युं छे. ‘चरितं खलु धम्मो’ एटले के चारित्र ते
साक्षात् धर्म छे, पण साथे साथे ‘दंसणमूलो धम्मो’ एटले ते धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन
छे,–ए पण न भूलवुं जोईए. आ बंने वचन कुंदकुंदस्वामीनां ज छे. मूळमां सम्यग्दर्शन
न होय त्यां चारित्रनी शाखा फूटती नथी ने मोक्षफळ पाकतां नथी, माटे सम्यग्दर्शन
मोक्षनुं मूळ छे. अने सम्यग्दर्शन पछी ज्यारे शुद्धोपयोगरूप चारित्रदशा प्रगट करे त्यारे
ज मुनिपणुं ने मोक्षदशा प्रगटे छे–माटे चारित्र ते साक्षात् धर्म छे. आम सम्यक् चारित्र
ने सम्यग्दर्शन बंनेनो महिमा समजीने भक्तिपूर्वक तेनी आराधनानो उद्यम करवो
(आ अंकनी तत्त्वचर्चा पूरी) जयजिनेन्द्र
आनंदनो मार्ग पण आनंदरूप छे. मोक्ष
ने परम आनंदधाम छे ने तेनो मार्ग पण
आनंदधाममां ज छे. राग तो आकुळतानुं
धाम छे, ते कांई आनंदनुं धाम नथी, तेथी
तेमां मोक्षमार्ग नथी. जेम मोक्ष आनंदस्वरूप
छे तेम तेनो मार्ग पण आनंदस्वरूप छे,
एमां आकुळतानुं स्थान नथी, एमां रागनुं
स्थान नथी. राग रागमां छे पण मोक्ष
मार्गमां नथी. जे भाव मोक्षमार्गरूप छे तेमां
रागनो अभाव छे. राग ते आनंददाता नथी,
पण दुःखदाता छे; मोक्षमार्ग तो आनंददाता
छे, ते दुःखदाता नथी.