Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : आसो :
(प९) प्रश्न:– सम्यग्दर्शन पाम्यो त्यारे जे आनंद जीवने अनुभवायो तेनुं भाषामां
वर्णन आवी शके के केम?ं
उत्तर:– ए अतीन्द्रिय वेदननुं वाणीमां पूरुं वर्णन न आवे; अमुक वर्णन आवे, ते
उपरथी सामो जीव जो तेवा लक्षवाळो होय तो साची स्थिति समजी जाय.
(६०) प्रश्न:– एक छूटो परमाणु आंखथी के बीजा कोई दूरबीन वगेरे साधनथी जोई
शकाय खरो?
उत्तर:– ना, पांच ईन्द्रियसंबंधी ज्ञाननो ते विषय नथी; अवधिज्ञान वडे परमाणुने
जाणी शकाय, पण अवधिज्ञान बहारना कोई साधनथी थतुं नथी. अवधिज्ञान आंखवडे
पण जाणतुं नथी. तेमज परमाणुने जाणे एवुं सूक्ष्म अवधिज्ञान तो ज्ञानीने ज थाय छे,
अज्ञानीने तेवुं अवधिज्ञान होतुं नथी. एटले, एकत्वरूप परम आत्माने जे जाणे ते ज
एक परमाणुने जाणी शके.
आ अंकनी तत्त्वचर्चा पूरी. दीवाळीए फरी मळशुं. (जयजिनेन्द्र)
कोई न आवे संग तारी....
एकलो जाने रे....
दुष्कर्मना उदयथी दुःखित होवा छतां पण जे
मनुष्य संतुष्ठ थईने आ अत्यंत पवित्र
सम्यग्दर्शनमां निश्चल स्थिति करे छे अर्थात्
सम्यग्दर्शनने धारण करे छे ते एकलो पण आ
जगतमां अत्यंत प्रशंसनीय छे; परंतु जेओ
अत्यंत आनन्दने देनारा सम्यग्दर्शनादि
रत्नत्रयरूप अमृतमार्गथी (–मोक्षमार्गथी) बाह्य
छे, तथा वर्तमानकाळमां शुभकर्मना उदयथी प्रसन्न
छे एवा, मिथ्यामार्गमां गमन करनारा मिथ्याद्रष्टि
मनुष्यो घणा होय तोपण तेओ प्रशंसनीय नथी.
माटे हे जीव! तुं एकलो हो तोपण जिनमार्गमां
द्रढपणे सम्यक्त्वनी आराधना कर.
–पद्मनंदी मुनिराज