Atmadharma magazine - Ank 264
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : आसो :
भादरवा सुद त्रीजे जैनविद्यार्थीगृहना विद्यार्थीओ द्वारा
श्रीकंठवैराग्य अर्थात् ‘चलो नंदीश्वर’ नुं नाटक थयुं हतुं.
ईंदोरना पं. श्री बंसीधरजी शास्त्री हमणां पोतानी स्वयं
प्रेरणाथी सोनगढ आवीने रह्या ने त्रण महिना सुधी
पूजन–प्रवचन–भक्ति–शिक्षणवर्ग वगेरे बधा कार्यक्रमोमां
नियमित भाग लीधो; अहींना वातावरणथी खूब प्रभावित
थया, अने जती वखते लागणीपूर्वक गुरुदेवनो घणो महिमा
कर्यो. अत्रे लक्षमां रहे के जयपुरमां थयेली विद्वानोनी
तत्त्वचर्चामां बंने पक्ष तरफथी तेओ मध्यस्थी तरीके हता.
दशलक्षणीपर्युषण दरमियान वांचनकार भाईने मोकलवा
माटे अनेक शहेरोना मुमुक्षुमंडळनी मांगणी आवी हती, ते
अनुसार दिल्ही, कलकत्ता, मुंबई, जयपुर, ईन्दोर,
अमदावाद, घाटकोपर, दमोह, विदिशा, खंडवा, खतौली,
मलकापुर, महिदपुर, राधौगढ, गुना कोटा, उदेपुर,
प्रतापगढ, मैनपुर, सागर, राजकोट, जलगांव, चिखली,
खंडेरी, वगेरे गामोमां सोनगढ तरफथी वांचनकार
विद्वानभाईओने मोकलवानो प्रबंध करवामां आव्यो हतो;
आ उपरांत मोम्बासा, मोशी, एडन, नैरोबी, अशोकनगर,
उज्जैन, एम्मादपुर, बडोत, सहारनपुर, बडनगर, मंदसौर,
भोपाल वगेरे अनेक स्थळे पण मुमुक्षुमंडळ तरफथी
उत्साहपूर्वक पर्युषणपर्व उजवायाना समाचार आवेल छे.
दरेक ठेकाणे मोटी संख्यामां जिज्ञासुओ सांभळवा आवता
ने सारी प्रभावना थई हती. गुरुदेवनी अध्यात्मिक
हाकलथी हवे जैनसमाज जाग्यो छे, ने दिनेदिने प्रभावना
वधती जाय छे.
तीर्थंकरो अने मुनिओनी तो शी वात!–तेओनुं तो जीवन
स्वानुभव वडे अध्यात्मरसथी ओतप्रोत बनेलुं छे; ते
उपरांत जैन शासनमां अनेक धर्मात्मा–श्रावको पण एवा
पाक्या छे के जेमनुं अध्यात्मजीवन अने अध्यात्मवाणी
अनेक जिज्ञासुओने अध्यात्मनी प्रेरणा जगाडे छे.
अध्यात्मरस ए जगतना बधा रसो करतां सर्वोत्कृष्ट छे.