: ३८ : आत्मधर्म : आसो :
प्रा सं गि क “स त्त्वे षु मै त्री”
सर्वत्र शांति प्रसरो...समस्त देशोनी प्रजा क्षेमकुशळ हो....
सर्वजीवोने हितकारी धर्मचक्र सदाय प्रवर्तमान रहो
अशांतिथी भरेली आ दुनियामां एक चैतन्यतत्त्व ज शांतिनुं धाम छे–ते सन्तो
बतावी रह्या छे. अनित्यताना ने अशांतिना बनावो तो जगतमां सदाय बन्या ज
करता होय छे. हालमां दिनेदिने झडपभेर जे बनावो बनी रह्या छे, ने साराय राष्ट्रने जे
असर करी रह्या छे ते संसारनुं अशरणपणुं ने क्षणभंगुरपणुं जोरशोरथी प्रसिद्ध करी
रह्या छे, जेनुं स्वरूप विचारतां संसारमांथी मुमुक्षुने चित्त एकदम हटीने स्वरूपनुं शरण
शोधवा एकदम तत्पर बने छे. संसारनुं आवुं स्वरूप जाणीने संतोए एक अत्यंत टूंको
छतां महान वैराग्यमंत्र आप्यो छे–“जगदस्थिरम्”
ताजेतरमां (ता १९ सप्टेम्बर १९६प ना रोज) गुजरात राज्यना मुख्यप्रधान
श्री बळंवतरायभाई महेता तथा तेमना धर्मपत्नी सरोजबेन वगेरेना अवसाननो
अति करुण बनाव तो घणो वैराग्यप्रेरक छे. आकाशमां के पाताळमां क््यांय पण काळना
झपटामांथी जीव बची शकतो नथी; सुखसाधनथी भरपूर एरोप्लेन के मुख्यप्रधान जेवुं
मोटुं पद–ए कोई एमने न तो बचावी शकयुं, के न शरणरूप थयुं. मरणथी बचावनार
एक ज वस्तु छे–अने ते रत्नत्रयधर्म.
एक देवे क्रोधित थईने द्वारिकानगरी भस्म करवा मांडी; श्री कृष्ण जेवाजेना रक्षक
एवी द्वारिकानगरी भडभड सळगवा मंडी....घणा जीवो वैराग्य पामी स्वरूप साधवा चाल्या
गया, श्री कृष्ण अने बळभद्र जेवा बळवान योद्धाए दरियाना पाणी वडे ए द्वारिकाने
आगथी बचाववानो प्रयत्न करवा लाग्या. पण दरियानुं पाणी तेल जेवुं थईने, आगने
ठारवाने बदले ऊलटुं वधारवा लाग्युं. माता–पिताने बचाववा रथमां बेसाडीने नगर बहार
काढवा मांडया पण रथना घोडा भस्म थई गया; घोडाने स्थाने श्रीकृष्ण अने बळभद्र पोते
जाते रथ खेंचवा मांडया–पण ए रथ एक डगलुं पण न चसक्यो...श्रीकृष्ण जेवा श्रीकृष्ण
नजर सामे ज मातापिताने आगमां भस्म थतां असहायरूपे जोई रह्या! अरे, संसार!
अंदर असंख्यप्रदेशी शांतिधाम छे ते ज निर्भय शरणस्थान छे.
जगत् सन्तोना प्रतापे आवुं सर्वजीवोने हितकारी एवुं धर्मचक्र
शान्तिधाम देखो. सदाय प्रवर्तमान रहो.
सर्वत्र शांति प्रसरो. समस्त देशोनी प्रजा क्षेमकुशळ हो.
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक:– अनंतराय हरिलाल शेठ. आनंद प्रिंन्टीग प्रेस–भावनगर