Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष : २३ अंक : १

वीर सं. : २४९२ कारतक
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी) (संपादक: ब्र. हरिलाल जैन: सोनगढ
नूतन वर्षना प्रारंभे
आपणुं आत्मधर्म–मासिक पू. गुरुदेवनी मंगल छत्रछायामां आजे २३ मा वर्षमां
प्रवेशी रह्युं छे. गुरुदेव आपणने जे आत्महितकारी बोध आपी रह्या छे तेनी
प्रभावनामां ‘आत्मधर्म’ नो केटलो फाळो छे ते सौ जाणे छे, एटले ज सर्वे जिज्ञासुओए
‘आत्मधर्म’ ने पोतानुं ज समजीने प्रेमथी–आदरपूर्वक अपनाव्युं छे. आत्मधर्मे हंमेशां
पोताना उच्च आदर्शो ने उच्च प्रणाली जाळवी राखी छे ने हजी संतोनी छायामां अने
साधर्मीओना सहकारथी तेने अनेकविध विकसाववानी भावना छे. अमने जणावतां
आनंद थाय छे के आ अंकथी ब्र. भाईश्री हरिलाल जैन आत्मधर्मनुं संपादनकार्य
संभाळशे. आत्मधर्मना पाठको तेमनाथी परिचित ज छे; बावीस वर्ष पहेलांं आत्मधर्म
शरू थयुं त्यारथी ज माननीय मुरब्बी श्री रामजीभाईनी दोरवणी अने सलाह–सूचना
अनुसार आत्मधर्मनुं लेखन–संपादनकार्य तेओ सांभळी ज रह्या छे, हवे संपादनशैलीमां
आधुनिक सुधारावधारा करीने तेओ आत्मधर्मने वधु ने वधु विकसित ने आकर्षक
बनाववा प्रयत्न करशे. आत्मधर्मना समस्त जिज्ञासु पाठको पण आत्मधर्मना
विकासमां सहकार आपशे. एनो अमने विश्वास छे.
‘आत्मधर्म’ नो मुख्य उद्देश–देवगुरुधर्मनी सेवा, आत्मार्थितानुं पोषण
अने वात्सल्यनो विस्तार; ते उद्देशने पुष्टिकारक पू. गुरुदेवनो उपदेश आत्मधर्ममां
अपाय छे. दर महिने लगभग ६० प्रवचनो द्वारा गुरुदेव तो अमृतना धोध
वहेवडावे छे, ने साक्षात् श्रोताओ आनंदथी तेनुं पान करे छे. पण आत्मधर्ममां तो
तेमांथी चूंटी चूंटीने मात्र चार प्रवचन जेटलुं ज आवी शके, छतां जेम बने तेम
वधु साहित्य आपवानो प्रयत्न करीशुं. माननीय मुरब्बी श्री रामजीभाईए
अनेक वर्षो सुधी आत्मधर्मनुं तंत्रीपद संभाळीने जे दोरवणी आपी छे ते बदल
तेमनो तथा हालना तंत्रीश्री जगजीवनभाईनो आभार मानुं छुं.
अंतमां श्री जैनशासननी, पू. गुरुदेवनी ने पू. जिनवाणीमातानी वधु ने
वधु सेवानुं सामर्थ्य ‘आत्मधर्म’ ने मळे एवी प्रार्थना करूं छुं.
नवनीतलाल सी. जवेरी
प्रमुख,श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
(सोनगढ)