Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : कारतक :
रागथी पार छे. जेम आत्मा ‘अलिंगग्रहण’ एटले अतीन्द्रियग्राह्य छे तेम
तेनी सम्यक्त्वादि दशा ते पण खरेखर अलिंगग्रहण एटले
अतीन्द्रियग्राह्य छे, एकला ईन्द्रियगम्य अनुमानथी तेने ओळखी शकाय
नहि. (एनुं घणुं सरस वर्णन प्रवचनसार गा. १७२ अलिंगग्रहणना
वीस बोलमांथी चोथा बोलमां कर्युं छे. (जुओ सुवर्णसन्देश पत्रिका नं.
२१)
(६३) प्रश्न: –सम्यग्दर्शन पामवानी तैयारीवाळा जीवनी दशा केवी होय छे? ने
सम्यग्दर्शन पाम्या पछी गृहस्थदशामां तेनी दशा केवी होय छे?
उत्तर: –एक आत्मअनुभवनो ज उमंग, एनो ज रंग, वारंवार सतत
तेनी ज घोलना, निजस्वरूपनी अतिशय महत्ता ने तेनी एकनी ज
प्रियता, बीजे बधेथी परिणाम हटावीने एक आत्मस्वरूपमां ज
परिणामने लगाववानो ऊंडो–ऊंडो उग्र प्रयत्न, स्वरूपनी अप्राप्तिनो
प्रथम तीव्र अजंपो, तेनी प्राप्ति माटे अपार जिज्ञासा, पछी स्वरूपनी
आराधनानो (नीकटमां ज तेनी प्राप्तिनो) उल्लास–एम घणा प्रकारे
अनेकवार गुरुदेव सम्यक्त्वनी भूमिकानुं स्वरूप समजावे छे.
जेने स्वरूप प्राप्त थयुं ने अपूर्वता थई ते तो अपार गंभीरतापणे अंदर ने
अंदर ज समाय छे. ए ताजा समकितीनी परिणतिमां कोई परम
उदासीनता, जगतथी अलिप्तता, आत्माना आनंदनी कोई अचिन्त्य
खुमारी...(अनुभवनो अधुरो उत्तर अनुभव वडे ज पूरो थाय एवो छे.
अनुभव थाय त्यारे एनुं रहस्य समजाय.)
(६४) प्रश्न –जैनधर्म निरीश्वरवादी छे? ते ईश्वरने नथी मानतो–ए खरुं?
उत्तर: –ना; ईश्वरने साचा स्वरूपे जैनधर्म ज स्वीकारे छे. आत्मानुं संपूर्ण
ऐश्वर्य जे सर्वज्ञता ते जे आत्माने प्रगटेल छे ते आत्मा पोते ईश्वर छे.
एवा सर्वज्ञ–ईश्वरने जैनो ज खरा स्वरूपे ओळखीने स्वीकारे छे. अन्य
लोको ईश्वरनुं साचुं स्वरूप जाणता नथी.
आ आत्मा पण पोतानी आत्मशक्ति खीलवीने परमेश्वर बनी शके छे.
एकेक आत्मामां पोतपोतानी परमेश्वरता भरी छे;–आवुं दरेक आत्मानुं
ईश्वरपणुं बतावे छे–ते जैनधर्मनी खास विशिष्ठता छे, जैनो सिवाय बीजा
कोई ते जाणता के स्वीकारता नथी.