Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : कारतक :
(६८) प्रश्न –महाविदेहक्षेत्रमां क््यो धर्म?
उत्तर: –त्यां व्यक्तपणे शुद्ध दिगंबर जैनधर्म ज होय छे; अंदर अभिप्रायमां
भले मिथ्याअभिप्रायवाळा जीवो होय पण प्रसिद्धपणे तो जैनधर्मनुं ज
प्रवर्तन छे. ए सिवाय बीजा कोई मत, तेना मंदिरो के तेना गुरुओनुं त्यां
प्रवर्तन नथी. त्यां ओछामां ओछा वीस तीर्थंकरभगवंतो तो सदैव वर्तता
ज होय छे.–
धर्मकाळ अहो वर्ते धर्मक्षेत्र विदेहमां,
वीसवीस जहां गर्जे धोरी धर्मप्रवर्तका
ए सीमंधरादि तीर्थंकरभगवंतोने नमस्कार हो.
(६९) प्रश्न: –भेदज्ञाननी रीत अघरी लागे छे तो शुं करवुं?
उत्तर: –उत्साहपूर्वक वारंवार द्रढपणे अतिशय प्रेमथी तेनो अभ्यास करतां
ते जरूर सुगम थई जाय छे. अटपटु ने सूक्ष्म तो छे पण अशक््य नथी,
एटले तेना खरा प्रयत्नथी ते जरूर थई शके तेवुं छे. भेदविज्ञान करी
करीने अनंता जीवो मुक्ति पाम्या, ते जीवो पण आपणा जेवा ज हता, तो
तेमणे जे कर्युं ते आपणाथी पण थई शके तेवुं छे. खरी धगशथी तेनो
अभ्यास करवो जोईए.
राग अने ज्ञान वच्चे सूक्ष्म सांध छे, तेओ सांध वगरना–एकमेक थई
गया नथी, माटे प्रज्ञाछीणीना अभ्यासवडे तेमने भिन्न पाडीने शुद्धज्ञानने
अनुभवी शकाय छे.
(७०) प्रश्न: –कोई जीवने सीधुं क्षायिक सम्यक्त्व थाय?
उत्तर: –क्षायोपशमिकमांथी ज क्षायिक सम्यक्त्व थाय; अनादिना
मिथ्याद्रष्टि जीवने पहेलांं उपशम–सम्यक्त्व ज थाय; पछी क्षयोपशमपूर्वक
ज क्षायिक थाय. एटले त्रणे प्रकारना सम्यक्त्वने दरेक मोक्षगामी जीव
जरूर पामे ज.
आ अंकनी चर्चा पूरी: जय जिनेन्द्र.