Atmadharma magazine - Ank 265
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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शूरातन
हे जीव! आत्माने माटे शूरातन चडाव: अरिहंतोना
भक्त शूरवीर होय छे
जीवने जे कार्य करवानुं शूरातन चडे छे ते कार्य ते कोईपण
भोगे पार पाडे छे. आ संबंधी लडाईनुं द्रष्टान्त आपतां गुरुदेवे
रात्रिचर्चामां कह्युं के–दुश्मननो नाश करवानुं जेने शूरातन चडयुं ते
सैनिक पोताना देहनी दरकार छोडीने–कुटुंबादिनी दरकार छोडीने
‘याहोम’ करे छे,–हाथ पग कपाय, आंखो जाय छतां ते पाछी पानी
करतो नथी के शूरातन छोडतो नथी,–साजो थईने फरी लडवा जवुं छे
एम कहे छे. तेम अहीं जे आत्मार्थी–सैनिकने आत्माने साधवानुं
शूरातन जाग्युं छे. मोहशत्रुने नाश करवा माटे शूरातन चडयुं छे ते
देहनी ने जगतनी बधानी दरकार छोडीने अंदरमां ‘याहोम’ करे छे.
प्रतिकूळताने गणकारतो नथी, आत्माने साधवामां क््यांय पाछी पानी
करतो नथी; शूरवीर योद्धानी जेम सर्व प्रयत्नथी आत्माने साधे छे.
आत्माने साधवानुं साचुं शूरातन चडे तो आत्मा तुरत ज जरूर
सधाय.
श्रीमद्राजचंद्र कहे छे के–शूरातन होय तो वर्षनुं काम बे घडीमां
करी शकाय. शूरवीरपणुं ग्रहीने ज्ञानीने मार्गे चालतां मोक्षपाटण
सुलभ ज छे. मोक्षमार्ग प्राप्त करवामां शूरवीरपणुं ग्रहण करवा योग्य
छे....उल्लासित वीर्यवान परमतत्त्व उपासवानो मुख्य अधिकारी छे.
अरे जीव! तुं शूरवीर था....तारी प्रभुतानी बेहद ताकात
तारामां भरी छे.... तेनी श्रद्धाना सिंहनाद करीने आत्माने
साध....कायरता छोडीने वीरतापूर्वक वीरमार्गे आगे बढ....
अरिहंतोना भक्त शूरवीर होय छे.