: २६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
के ज्ञानपरिणामनो आधार श्रद्धा नथी, बंने परिणामनो आधार आत्मा छे.
एम सर्व गुणोना परिणाममां समजवुं. आ रीते परिणाम ते परिणामीनुं ज
छे, अन्यनुं नहि.
आ २११ मा कळशमां आचार्यदेवे कहेला वस्तुस्वरूपना सिद्धांतना चार
बोलमांथी आ हजी बीजा बोलनुं विवेचन चाले छे. प्रथम तो कह्युं के ‘परिणाम
एव किल कर्म’ अने पछी कह्युं के ‘स भवति परिणामिन एव, न अपरस्य भवेत्’
परिणाम ते ज कर्म छे, अने ते परिणामीनुं ज होय छे. अन्यनुं नहि.–आवो
निर्णय करीने स्वद्रव्यसन्मुख लक्ष जतां सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान थाय छे.
सम्यग्दर्शनपरिणाम थया ते आत्मानुं कर्म छे, ते आत्मारूप परिणामीना
आधारे थया छे. पूर्वना मंदरागना आश्रये के वर्तमानना शुभ रागना आश्रये
ते सम्यग्दर्शनपरिणाम थया नथी. जो के राग पण छे तो आत्माना परिणाम,
पण श्रद्धापरिणामथी रागपरिणाम अन्य छे, ते श्रद्धाना परिणाम रागना
आश्रये नथी. केमके परिणाम परिणामीना ज आश्रये होय छे, अन्यना आश्रये
नहि.
ए ज रीते हवे चारित्रपरिणाममां:– आत्मस्वरूपमां स्थिरता ते
चारित्रनुं कार्य छे; ते कार्य श्रद्धापरिणामना आश्रये नथी, ज्ञानना आश्रये नथी,
पण चारित्रगुणधारी आत्माना आश्रये ज छे. देहवगेरेना आश्रये चारित्र
नथी.
श्रद्धाना परिणाम आत्मद्रव्यना आश्रये छे;
ज्ञानना परिणाम आत्मद्रव्यना आश्रये छे;
स्थिरताना परिणाम आत्मद्रव्यना आश्रये छे;
आनंदना परिणाम आत्मद्रव्यना आश्रये छे.
बस, मोक्षमार्गना बधा परिणाम स्वद्रव्यना आश्रये छे, बीजाना आश्रये
नथी; ते वखते बीजा परिणाम (रागादि) होय तेना आश्रये पण आ परिणाम
नथी. एक समयमां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वगेरे अनंतगुणना परिणाम