Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : २५ :
आ तो भिन्न भिन्न द्रव्यना परिणामनी भिन्नतानी वात थई; अहीं तो
तेथी आघी अंदरनी वात लेवी छे, एक ज द्रव्यना अनेक परिणामो पण
एकबीजाना आश्रये नथी, एम बताववुं छे. राग अने ज्ञान बंने कार्य जुदा
छे, एकबीजाना आश्रये नथी.
कोईए प्रतिकूळता करी के गाळ दीधी ने जीवने द्वेषना पापपरिणाम
थया, त्यां ते पापना परिणाम प्रतिकूळताना कारणे थया नथी, तेम ज गाळ
देनाराना आश्रये थया नथी, पण चारित्रगुणना आश्रये थया छे,
चारित्रगुण ते वखते ते परिणामरूपे परिणम्यो छे.
हवे, द्वेष वखते तेनुं ज्ञान थयुं के ‘मने आ द्वेष थयो, ’ –ते
ज्ञानपरिणाम ज्ञानगुणना आश्रये छे, क्रोधना आश्रये नथी. ज्ञानस्वभावी
द्रव्यना आश्रये ज्ञानपरिणाम थाय छे, अन्यना आश्रये नहि. ए ज रीते
सम्यग्दर्शनपरिणाम, सम्यग्ज्ञानपरिणाम, आनंदपरिणाम वगेरेमां पण
समजवुं. ते ज्ञानादि परिणामो द्रव्यना आश्रये छे, अन्यना आश्रये नथी,
तेमज परस्पर एक– बीजाना आश्रये पण नथी.
गाळना शब्दो के द्वेष वखते तेनुं ज्ञान थयुं, ते ज्ञान शब्दोना आश्रये
नथी के क्रोधना आश्रये नथी, तेनो आधार तो ज्ञानस्वभावी वस्तु छे,–माटे
तेना उपर मीट मांड तो तारी पर्यायमां मोक्षमार्ग प्रगटे; ते मोक्षमार्गरूपी
कार्यनो कर्ता पण तुं ज छो, अन्य कोई नहि.
अहो, आ तो सीधी ने स्पष्ट वात छे. बहारनां भणतर न भण्यो होय
तोपण आ समजाय तेवुं छे. जराक अंदर लक्षमां लेवुं के आत्मा अंतरमां
अस्तिरूप वस्तु छे, तेमां अनंतगुण छे; ज्ञान छे, आनंद छे, श्रद्धा छे,
अस्तित्व छे, एम अनंतगुणो छे. ते अनंतगुणोना भिन्नभिन्न जे अनंत
परिणाम समये समये थाय ते बधानो आधार परिणामी एवुं आत्मद्रव्य छे,
बीजी वस्तु तो तेनो आधार नथी, पण पोतामां बीजा गुणना परिणाम पण
तेनो आधार नथी, –जेम के श्रद्धापरिणामनो आधार ज्ञानपरिणाम नथी