Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
कोईने एवा भाव थया के एकसो रूपिया दानमां आपुं, तेना ते
परिणाम आत्मवस्तुना आश्रये थया छे; त्यां रूपिया जवानी क्रिया थाय ते
रूपियाना रजकणना आश्रये छे, जीवनी ईच्छाना आश्रये नहि. हवे ते वखते
ते रूपियानी क्रियानुं ज्ञान, के ईच्छाना भावनुं ज्ञान थाय छे ते ज्ञानपरिणाम
आत्माना आश्रये थाय छे.–आम दरेक परिणामनी वहेंचणी करीने
वस्तुस्वरूप जाणवुं जोईए.
भाई, तारुं ज्ञान ने तारी ईच्छा, ए बंने परिणाम आत्माना ज होवा
छतां तेओ पण एकबीजाना आश्रये नथी तो पछी परना आश्रयनी तो वात
ज शी? दाननी ईच्छा थई ने रूपिया अपाया, त्यां रूपिया जवानी क्रिया
हाथना आधारे पण नथी, हाथनुं हालवुं ते ईच्छाना आधारे नथी, ने
ईच्छानुं परिणमन ते ज्ञानना आधारे नथी. सौ पोतपोताना आश्रयभूत
वस्तुना आधारे छे.
जुओ. आ सर्वज्ञना घरना विज्ञानपाठ छे, आवुं वस्तुस्वरूपनुं ज्ञान ते
ज साचुं पदार्थविज्ञान छे जगतना पदार्थोनो स्वभाव ज एवो छे के ते कायम
एकरूपे न रहे, पण परिणमन करीने नवी नवी अवस्थारूप कार्यने कर्या करे.–
ए वात चोथा बोलमां कहेशे. जगतनां पदार्थोनो स्वभाव एवो छे के ते
कायम रहे तेम ज तेमां क्षणेक्षणे नवी नवी अवस्थारूप कार्य तेना पोताना
आश्रये थया करे. वस्तुस्वभावनुं आवुं ज्ञान ते ज सम्यग्ज्ञान छे.
जीवने ईच्छा थई माटे हाथ हाल्यो ने सो रूपिया देवाया एम नथी.
ईच्छानो आधार आत्मा छे, हाथ अने रूपियानो आधार परमाणु छे.
रूपिया जवाना हता माटे ईच्छा थई एम पण नथी.
हाथनुं हलनचलन ते हाथना परमाणुना आधारे छे.
रूपियानुं आववुं–जवुं ते रूपियाना परमाणुना आधारे छे.