स्थिरता थाय तेनुं नाम धर्म छे. सत्थी विपरीत ज्ञान करे तो धर्म न थाय.
मूळ धर्म स्वमां स्थिरता छे, पण वस्तुस्वरूपना साचा ज्ञान वगर स्थिरता
करशे शेमां?
पुद्गलोना आश्रये ते परिणाम थया छे ईच्छाना आश्रये नहि; तेमज
ईच्छाना आश्रये ज्ञान पण नथी. पुद्गलना परिणाम आत्माना आश्रये
मानवा, के आत्माना परिणाम पुद्गलना आश्रये मानवा, तेमां तो विपरीत
मान्यतारूप मूढता छे.
मानतां विरुद्ध माने तो ते लोकोत्तर मूर्ख अने अविवेकी छे. विवेकी अने
विचक्षण थयो क््यारे कहेवाय? के वस्तुना जे परिणाम थया तेने कार्य गणी,
तेने परिणामी–वस्तुना आश्रये समजे ने बीजाना आश्रये न माने, त्यारे
स्वपरनुं भेदज्ञान थाय, ने त्यारे विवेकी थयो कहेवाय. परना आश्रये
आत्माना परिणाम थता नथी. अहीं तो विकारी के अविकारी जे कोई
परिणाम जे वस्तुना छे ते वस्तुना ज आश्रये छे, परना आश्रये नथी.
बधा पदार्थोमां लागु पडे छे.