Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : २३ :
सत् जेम छे तेम तेनुं ज्ञान करे तो सत् ज्ञान थाय, ने सत्नुं ज्ञान करे
तो तेनुं बहुमान ने यथार्थनो आदर थाय, रुचि थाय, श्रद्धा थाय ने तेमां
स्थिरता थाय तेनुं नाम धर्म छे. सत्थी विपरीत ज्ञान करे तो धर्म न थाय.
मूळ धर्म स्वमां स्थिरता छे, पण वस्तुस्वरूपना साचा ज्ञान वगर स्थिरता
करशे शेमां?
आत्मा, अने शरीरादि रजकणो भिन्नभिन्न तत्त्वो छे; शरीरनी
अवस्था हाले–चाले बोले ते तेना परिणामी पुद्गलोना परिणाम छे, ते
पुद्गलोना आश्रये ते परिणाम थया छे ईच्छाना आश्रये नहि; तेमज
ईच्छाना आश्रये ज्ञान पण नथी. पुद्गलना परिणाम आत्माना आश्रये
मानवा, के आत्माना परिणाम पुद्गलना आश्रये मानवा, तेमां तो विपरीत
मान्यतारूप मूढता छे.
जगतमां पण जे चीज जेम होय तेनाथी ऊलटी कोई कहे तो लोको तेने
मूर्ख कहे छे, तो आ सर्वज्ञे कहेलो लोकोत्तर वस्तुस्वभाव जेम छे तेम न
मानतां विरुद्ध माने तो ते लोकोत्तर मूर्ख अने अविवेकी छे. विवेकी अने
विचक्षण थयो क््यारे कहेवाय? के वस्तुना जे परिणाम थया तेने कार्य गणी,
तेने परिणामी–वस्तुना आश्रये समजे ने बीजाना आश्रये न माने, त्यारे
स्वपरनुं भेदज्ञान थाय, ने त्यारे विवेकी थयो कहेवाय. परना आश्रये
आत्माना परिणाम थता नथी. अहीं तो विकारी के अविकारी जे कोई
परिणाम जे वस्तुना छे ते वस्तुना ज आश्रये छे, परना आश्रये नथी.
पदार्थना परिणाम ते ज तेनुं कार्य छे–ए एक वात; बीजुं ते परिणाम
वस्तुना ज आश्रये थाय छे, अन्यना आश्रये थता नथी.–आ नियमो जगतना
बधा पदार्थोमां लागु पडे छे.
जुओ, भाई! आ तो भेदज्ञान माटे वस्तुस्वभावना नियमो बताव्या
छे. हळवे हळवे द्रष्टान्तथी युक्तिथी वस्तुस्वरूप सिद्ध करवामां आवे छे.