Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
होय? ए तो जडनुं कार्य छे.
जगतमां जे कोई कार्य होय ते सत्नी अवस्था होय, कोई वस्तुना
परिणाम होय, पण वस्तु वगर अद्धरथी परिणाम न थाय. परिणामीनुं
परिणाम होय, टकती वस्तुना आश्रये परिणाम थाय, परना आश्रये न थाय.
परमाणुमां होठनुं हलन ने भाषानुं परिणमन–ए बंने पण जुदी चीज
छे. आत्मामां ईच्छा अने ज्ञान–ए बंने परिणमन पण भिन्नभिन्न छे.
होठना हलनना आश्रये भाषानी पर्याय नथी. होठनुं हलन ते होठना
पुद्गलोना आश्रये छे. भाषानुं परिणमन ते भाषाना पुद्गलोना आश्रये छे.
होठ अने भाषा,
ईच्छा अने ज्ञान,
ए चारेनो काळ एक, छतां चारे परिणाम जुदा.
तेमां पण ईच्छा अने ज्ञान ए बंने परिणाम आत्माना आश्रये होवा
छतां, तेमां ईच्छापरिणामना आश्रये ज्ञानपरिणाम नथी. ज्ञान ते आत्माना
परिणाम छे, ईच्छाना नहि. तेम ज ईच्छा ते आत्माना परिणाम छे, पण
ज्ञानना नहि. ईच्छाने जाणनारुं ज्ञान ते ईच्छानुं कार्य नथी, तेमज ते ज्ञान
ईच्छाने करतुं नथी. ईच्छा–परिणाम ते आत्मानुं कार्य खरुं, पण ज्ञाननुं
नहि; भिन्नभिन्न गुणना परिणाम भिन्नभिन्न छे, एक ज द्रव्यमां होवा छतां
एक गुणना आश्रये बीजा गुणना परिणाम नथी.
केटली स्वतंत्रता!! ने आमां परना आश्रयनी तो वात ज कयां रही?
आत्मामां चारित्रगुण, ज्ञानगुण वगेरे अनंतगुण, तेमां चारित्रना
विकृत परिणाम ते ईच्छा छे, ते चारित्रगुणना आश्रये छे, अने ते वखते ते
ईच्छानुं ज्ञान थयुं ते ज्ञानगुणरूप परिणामीना परिणाम छे, ते कांई ईच्छाना
परिणामना आश्रये नथी. आम ईच्छापरिणाम ने ज्ञानपरिणाम बंनेनुं जुदुं
परिणमन छे, एकबीजाना आश्रये नथी.