आत्मवस्तुना आश्रये छे. –माटे वस्तु सामे जो.
पोतपोताना परिणामीना ज आश्रये छे. ईच्छा ते आत्माना चारित्रगुणना
परिणाम छे, होठ चाले ते होठना रजकणोनी अवस्था छे, ते अवस्था
ईच्छाना आधारे थई नथी. भाषा नीकळे ते भाषावर्गणाना रजकणोनी
अवस्था छे, ते अवस्था ईच्छाने आश्रये के होठने आश्रये थई नथी, पण
परिणामी एवा रजकणोना आश्रये ते भाषा थई छे, अने ते वखतनुं ज्ञान
आत्मवस्तुना आश्रये छे, ईच्छाना के भाषाना आश्रये नथी.–आवुं
वस्तुस्वरूप छे.
जाय छे, पण वस्तुस्वरूपना साचा ज्ञान वगर क््यांय कल्याण नथी. आ
वस्तुस्वरूप वारंवार लक्षमां लईने परिणाममां भेदज्ञान करवा माटेनी आ
वात छे. एक वस्तुना परिणाम बीजी वस्तुना आधारे तो नथी, ने ते वस्तुमां
पण तेना एक परिणामना आश्रये बीजा परिणाम नथी, परिणामी–वस्तुना
आश्रये ज परिणाम छे. –आ मोटो सिद्धांत छे.
भाषा थई के भाषाने कारणे ज्ञान थयुं –एम नथी; तेमज ईच्छाना आश्रये
पण ज्ञान नथी. ईच्छा अने ज्ञान–ए बंने छे तो आत्माना परिणाम छतां
एकना आश्रये बीजा परिणाम नथी. ज्ञानपरिणाम अने ईच्छापरिणाम बंने
भिन्नभिन्न छे. ज्ञान ते ईच्छानुं कार्य नथी ने ईच्छा ते ज्ञाननुं कार्य नथी. ज्यां
ज्ञाननुं कार्य ईच्छा पण नथी त्यां जड भाषा वगेरे तो तेनुं कार्य क््यांथी