Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
‘परिणाम’ परिणामीना ज छे ने बीजाना नथी,–एमां जगतना बधा
पदार्थोनो नियम आवी जाय छे. परिणाम परिणामीना ज आश्रये होय छे,
बीजाना आश्रये होता नथी. ज्ञानपरिणाम आत्माना आश्रये छे, वाणी
वगेरे बीजाना आश्रये नथी. एटले आमां पर सामे जोवानुं न रह्युं पण
पोतानी वस्तु सामे जोईने स्वसन्मुख परिणमवानुं रह्युं. तेमां मोक्षमार्ग
आवी जाय छे.
वाणी ते अनंता जड–परमाणुओनी अवस्था छे, ने तेना
परमाणुओना आश्रये छे. बोलवानी जे ईच्छा थई तेना आश्रये भाषाना
परिणाम त्रणकाळमां नथी. हवे ईच्छा थईने भाषा नीकळी ते वखते तेनुं जे
ज्ञान थयुं, ते ज्ञान आत्माना आश्रये थयुं छे, भाषाना आश्रये के ईच्छाना
आश्रये ते ज्ञान थयुं नथी.
परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीना ज थाय छे, बीजाना
आश्रये थता नथी, –आम अस्ति नास्तिथी अनेकान्त करीने वस्तुस्वरूप
समजाव्युं छे. सत्यना सिद्धांतनी एटले के वस्तुना सत्स्वरूपनी आ वात छे,
तेने ओळख्या वगर मूढपणे अज्ञानमां जीवन गाळी नांखे छे. पण भाई!
आत्मा शुं, जड शुं, तेनी भिन्नता समजीने वस्तुस्वरूपना वास्तविक सत्ने
जाण्या वगर ज्ञानमां सत्पणुं थाय नहि, एटले सम्यग्ज्ञान थाय नहि;
वस्तुस्वरूपना सत्यज्ञान वगर रुचि ने श्रद्धा पण साची थाय नहि, साची
श्रद्धा वगर वस्तुमां स्थिरतारूप चारित्र प्रगटे नहि, शांति थाय नहि,
समाधान के सुख थाय नहि. माटे वस्तुस्वरूप शुं छे ते पहेलांं समज.
वस्तुस्वरूप समजतां, मारा परिणाम परथी ने परना परिणाम माराथी–एवी
पराश्रित बुद्धि रहे नहि एटले स्वाश्रित–स्वसन्मुख परिणमन प्रगटे, ते
धर्म छे.
आत्माने जे ज्ञान थाय छे ते जाणवाना परिणाम आत्माना आश्रये
छे. ते परिणाम वाणीना आश्रये थया नथी, कानना आश्रये थया नथी तेम
ज ते वखतनी ईच्छाना आश्रये पण थया नथी. जो के ईच्छा ते पण आत्माना