बीजाना आश्रये होता नथी. ज्ञानपरिणाम आत्माना आश्रये छे, वाणी
वगेरे बीजाना आश्रये नथी. एटले आमां पर सामे जोवानुं न रह्युं पण
पोतानी वस्तु सामे जोईने स्वसन्मुख परिणमवानुं रह्युं. तेमां मोक्षमार्ग
आवी जाय छे.
परिणाम त्रणकाळमां नथी. हवे ईच्छा थईने भाषा नीकळी ते वखते तेनुं जे
ज्ञान थयुं, ते ज्ञान आत्माना आश्रये थयुं छे, भाषाना आश्रये के ईच्छाना
आश्रये ते ज्ञान थयुं नथी.
समजाव्युं छे. सत्यना सिद्धांतनी एटले के वस्तुना सत्स्वरूपनी आ वात छे,
तेने ओळख्या वगर मूढपणे अज्ञानमां जीवन गाळी नांखे छे. पण भाई!
आत्मा शुं, जड शुं, तेनी भिन्नता समजीने वस्तुस्वरूपना वास्तविक सत्ने
जाण्या वगर ज्ञानमां सत्पणुं थाय नहि, एटले सम्यग्ज्ञान थाय नहि;
वस्तुस्वरूपना सत्यज्ञान वगर रुचि ने श्रद्धा पण साची थाय नहि, साची
श्रद्धा वगर वस्तुमां स्थिरतारूप चारित्र प्रगटे नहि, शांति थाय नहि,
समाधान के सुख थाय नहि. माटे वस्तुस्वरूप शुं छे ते पहेलांं समज.
वस्तुस्वरूप समजतां, मारा परिणाम परथी ने परना परिणाम माराथी–एवी
पराश्रित बुद्धि रहे नहि एटले स्वाश्रित–स्वसन्मुख परिणमन प्रगटे, ते
धर्म छे.
ज ते वखतनी ईच्छाना आश्रये पण थया नथी. जो के ईच्छा ते पण आत्माना