Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : १९ :
छे. परिणामी एटले आखी चीज, ते जे भावरूपे परिणमे छे तेने परिणाम
कहेवाय छे. परिणाम कहो, कार्य कहो, पर्याय कहो के कर्म कहो, –ते वस्तुना
परिणाम ज छे.
जेमके–आत्मा ज्ञानगुणस्वरूप छे, तेनुं परिणमन थतां ज्ञाननी
जाणवानी पर्याय थई ते तेनुं कर्म छे, ते तेनुं वर्तमान कार्य छे. राग के देह ते
कांई ज्ञाननुं कार्य नथी; पण ‘आ राग छे, आ देह छे’ एम तेने जाणनारुं जे
ज्ञान छे ते आत्मानुं कार्य छे. आत्माना परिणाम ते आत्मानुं कर्म छे ने
जडना परिणाम एटले जडनी अवस्था ते जडनुं कार्य छे;– आ रीते एक बोल
कह्यो.
(२) परिणाम वस्तुनुं ज होय छे, बीजानुं नहि
हवे आ बीजा बोलमां कहे छे के जे परिणाम छे ते परिणामी पदार्थनुं
ज थाय छे, ते कोई बीजाना आश्रये थतुं नथी. जेमके श्रवण वखते जे ज्ञान
थाय छे ते ज्ञान कार्य छे–कर्म छे. ते कोनुं कार्य छे? ते कांई शब्दोनुं कार्य नथी
पण परिणामी वस्तु–जे आत्मा तेनुं ज ते कार्य छे. परिणामी वगर परिणाम
होय नहि. आत्मा परिणामी छे–तेना वगर ज्ञानपरिणाम न होय–ए सिद्धांत
छे; पण वाणी वगर ज्ञान न थाय ए वात साची नथी. शब्द वगर ज्ञान न
होय एम नहि, पण आत्मा वगर ज्ञान न होय. आ रीते परिणामीना
आश्रये ज ज्ञानादि परिणाम छे.
जुओ, आ महा सिद्धांत छे; वस्तुस्वरूपनो आ अबाधित नियम छे.
परिणामीना आश्रये ज तेना परिणाम थाय छे. जाणनार आत्मा ते
परिणामी, तेना आश्रये ज ज्ञान थाय छे; ते ज्ञानपरिणाम आत्माना छे,
वाणीना नहि. वाणीना रजकणोना आश्रये ते ज्ञानपरिणाम नथी थतां, पण
ज्ञानस्वभावी आत्मवस्तुना आश्रये ते परिणाम थाय छे. आत्मावस्तु
त्रिकाळ टकनार परिणामी छे ते पोते रूपांतर थईने नवी नवी अवस्थापणे
पलटे छे, तेना ज्ञान–आनंद वगेरे जे वर्तमान भावो छे ते तेना परिणाम छे.