: १८ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
वस्तु पोते ज पोताना परिणामनी कर्ता छे, ने बीजा साथे तेने कर्ता–
१.
परिणाम एटले के पर्याय ते ज कर्म छे–कार्य छे.
२. ते परिणाम पोताना आश्रयभूत परिणामीना ज होय छे, अन्यना
नहि; केमके परिणाम पोतपोताना आश्रयभूत परिणामी (द्रव्य) ना
आश्रये होय छे, अन्यना परिणाम अन्यना आश्रये होता नथी.
३. कर्म कर्ता वगर होतुं नथी, एटले के परिणाम वस्तु वगर होता नथी.
४. वस्तुनी सदा एकरूप स्थिति (कूटस्थता) होती नथी, केमके वस्तु द्रव्य–
पर्यायस्वरूप छे.
आ रीते, आत्म के जड बधीये वस्तु स्वयं पोते ज पोताना
परिणामरूप कर्मनी कर्ता छे– ए वस्तुस्वरूपनो महा सिद्धांत आचार्यदेवे
समजाव्यो छे–तेना उपरनुं आ प्रवचन छे. आ प्रवचनमां अनेक पडखाथी
स्पष्टीकरण करीने गुरुदेवे भेदज्ञान घूंटी घूंटीने समजाव्युं छे.
जुओ, आमां वस्तुस्वरूपनो सिद्धांत चार बोलथी समजाव्यो छे. आ
जगतमां छ वस्तु छे, आत्माओ अनंत छे, पुद्गल परमाणुओ अनंत छे,
तथा धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाश अने काळ,–आम छए प्रकारनी जे वस्तु,
तेना स्वरूपनो वास्तविक नियम शुं छे, सिद्धांत शुं छे ते अहीं चार बोलथी
समजावे छे.
(१) परिणाम ते ज कर्म
प्रथम तो ‘ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयत:’ –एटले के
परिणामी वस्तुना जे परिणाम छे ते ज निश्चयथी (चोक्कसपणे) तेनुं कर्म छे.
कर्म एटले कार्य; परिणाम एटले अवस्था; पदार्थनी अवस्था ते ज खरेखर
तेनुं कर्म–कार्य