Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : १७ :
स्वतंत्रतानी घोषणा
[चार बोलथी स्वतंत्रतानी घोषणा करतुं खास प्रवचन]
(समयसार कलश २११) (सं. २०२२ कारतक सुद ३–४)
भगवान सर्वज्ञदेवे जोयेलो वस्तुस्वभाव केवो
छे, तेमां कर्ता–कर्मपणुं कई रीते छे ते अनेक प्रकारे
द्रष्टान्त अने युक्तिथी घूंटी घूंटीने समजावीने, ते
स्वभावना निर्णयमां कई रीते मोक्षमार्ग आवे छे ते
पू. गुरुदेवे आ प्रवचनमां बताव्युं छे. घूंटी घूंटीने
भेदज्ञान कराव्युं छे ने वीतरागमार्गना रहस्यभूत
स्वतंत्रतानी घोषणा करतां कह्युं छे के सर्वज्ञदेवे
कहेला आ परम सत्य वीतरागी विज्ञानने जे
समजशे तेनुं अपूर्व कल्याण थशे.
ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयतः
स भवति नापरस्य परिणामिन एव भवेत्।
न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म न चैकतया
स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्तृ तदेव ततः।। २११।।