: १६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
करनार जीवनी द्रष्टि ईन्द्रियज्ञान उपरथी छूटीने परिणामी एवा
त्रिकाळी आत्मा उपर जाय छे, त्यां तेने एकलुं ईन्द्रियज्ञान नथी
रहेतुं, स्वभावना लक्षे अतीन्द्रियज्ञान थाय छे ने मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
[८०] प्रश्न:– निगोदना जीवना जे परिणाम छे ते पण ते जीवना ज आश्रये छे,
छतां तेने मोक्षमार्ग केम नथी प्रगटतो?
उत्तर:– केमके, मारा परिणाम मारा द्रव्यना आश्रये छे–एवुं लक्ष ते जीव नथी
करतो, तेथी स्वलक्षे जे शुद्ध परिणाम थवा जोईए ते तेने थता नथी.
मारा परिणाम मारा द्रव्यना आश्रये थाय छे–एम नक्की करनारने
अंतरद्रष्टिथी जरूर मोक्षमार्ग प्रगटे छे. रागादि परिणाम जोके
स्वद्रव्यना आधारे थाय छे पण ते कांई स्वभावना लक्षे थयेला नथी,
तेथी ते मोक्षमार्ग नथी. स्वद्रव्यने लक्षमां लेतां जे शुद्धपरिणाम थया
ते निश्चयथी मोक्षमार्ग छे, ने पछी जे ईन्द्रियज्ञान के शुभराग बाकी
रह्यो तेने ज्ञानी व्यवहारे पोताना परिणाम जाणे छे, पण तेने ते
मोक्षमार्ग मानतो नथी.
प्रश्न:– पूर्वजन्मनी अढीवर्षनी गीता ते ज आ जन्मनी पांच वर्षनी राजुल छे,
ने तेने तेनुं स्मरण थयुं छे–ते वात साची?
उत्तर:– हा, ए वात साची छे. अहीं ते संबंधी विशेष विवेचनमां न ऊतरतां
तात्त्विकद्रष्टिए आपणे एटलो ज खुलासो करीशुं के पुनर्जन्म छे अने तेनुं स्मरण थई
शके छे. एटलुं ज नहि पण अहींथी अगम्य गणाय एवा क्षेत्रनुं ने असंख्य वर्षो
पहेलांंनुं स्मरण पण जीवने थई शके छे, ने एवा स्मरणवाळा आत्मा अत्यारे
विद्यमान छे. जीवनी ज्ञानशक्ति अगाध छे–ते शुं न जाणी शके? पू. गुरुदेवना
श्रीमुखथी अनेकवार आ वातनुं दिग्दर्शन थयेलुं छे. तेमांय आ मागशर सुद त्रीजे पू.
गुरुदेवना श्री मुखथी वहेलो आनंदकारी महिमा मुमुक्षुहृदयोमां चिरस्मरणीय बन्यो छे.
(शास्त्रपुराणोमां पण एना हजारो उदाहरणो भरेला छे. श्रीमद्राजचंद्रजी लखे छे के–
‘पुनर्जन्म छे, जरूर छे, ते माटे हुं अनुभवथी हा कहेवामां अचल छुं. ’ आथी वधु
प्रबल पुरावाओ पण आ संबंधमां छे.) पुनर्जन्म संबंधमां जैनसिद्धांत एवो छे के
संसारी जीव एक देह छोडीने तरत ज बीजो देह धारण करे छे. तथा पूर्वजन्मनुं स्मरण
ए देहथी जीवनी अत्यंत भिन्नता साबित करे छे.