Atmadharma magazine - Ank 266-267
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : मागशर : २४९२
(२०८) ईष्टनुं ध्यान
जेने जे ईष्ट होय तेने ते ध्यावे छे. धर्मीने ईष्ट पोतानो शुद्ध स्वभाव छे; राग
होय पण तेने ते ईष्ट मानता नथी. अज्ञानी रागना आश्रये लाभ मानतो होवाथी ते
रागने ईष्ट माने छे, एटले तेने ज ते ध्यावे छे, रागथी पार शुद्धात्मानुं ध्यान तेने होतुं
नथी. शुद्धात्माना ध्यान वगर सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्ध परिणमन थाय नहि.
माटे हे जीव! तारुं ईष्ट शुं छे तेने लक्षमां लईने ध्याव.
(२०९) जेवुं ध्यान तेवुं परिणमन
आत्मा परमात्मस्वरूप छे, तेने ओळखीने ते परमात्मस्वरूपना ध्यान वडे
आत्मा परमात्मा थाय छे. जेवा स्वरूपे आत्माने ध्यावे तेवी पर्याय प्रगटे छे. ‘हुं
अशुद्ध छुं, रागनो कर्ता छुं’ एम अशुद्धपणे ज आत्माने जे ध्यावे छे तेने
अशुद्धपरिणति थाय छे. अने शुद्ध स्वभाव तथा विकारनुं भेदज्ञान करीने जे शुद्ध
स्वभावने ध्यावे छे तेने शुद्धता थाय छे. स्वभावने ध्यावतां स्वसमयरूप एटले के
मोक्षमार्गरूप परिणमन थाय छे; विकारने के परने ध्यावतां पर समयरूप परिणमन
थाय छे. पर्यायमां विकार परिणमन होवा छतां, स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां आत्मा
विकाररूपे परिणम्यो नथी, शुद्ध छे. एवा शुद्धात्मानी उपासना ते मोक्षमार्ग छे. अंतर्मुख
*
परने जाणतां पर साथे तन्मयपणुं मानतां, तन्मयपणुं थया वगर आत्मा दुःखी
थाय छे.
* स्वने जाणतां स्व साथे तन्मय थईने आत्मा पोताना अतीन्द्रिय सुखनुं वेदन
करे छे.
* महामुनिवरो ने धर्मात्माओ समाधिमां उपयोगने स्वमां जोडीने परम
आनन्दने एकरसपणे अनुभवे छे.
* ज्ञानने दुःख साथे तन्मयपणुं नथी, ज्ञानने सुख साथे तन्मयपणुं छे. अज्ञानीने
दुःख अने विकार साथे तन्मयपणुं छे, पर साथे तन्मयपणुं कोईने नथी.