: मागशर : २४९२ आत्मधर्म : ६३ :
हालमां चर्चामां अनेक विधविध सुंदर
न्यायो आवे छे. गुरुदेव प्रमोदथी जिनशासननां
रहस्यो, अने “ज्ञानी’ना ज्ञाननी निर्मळतानो
खास महिमा अवारनवार समजावे छे, ते
सांभळतां सभाजनो रोमेरोमे उल्लसित थाय
छे. मागसर सुद अगिआरशनी रात्रे चर्चामां
सर्वज्ञस्वभावने अनुलक्षीने घणा न्यायो कह्या.
जिनशासननो खूब महिमा कर्यो....मुमुक्षुए
बधा पडखेथी पोतानो निर्णय द्रढ करवो जोईए. निर्णय एवो चोकखो जोईए के कोई
तरफथी विपरीतता न रहे.
गुरुदेवे सभाजनोने संबोधीने पूछयुं–
केवळी भगवान एक तरफथी एम कहे छे के जे समये जेम थवानुं में केवळज्ञानमां
जाण्युं छे ते समये तेम ज थाय; ने वळी ‘नियतवाद एटले के जे समये जे नियत छे ते ज
थाय’ एम माननारने मिथ्यात्व कहे,–तो ए बंनेमां मेळ कई रीते छे? तेनुं समाधान क््या
प्रकारे छे! एम सभाजनोमां घणाने पूछयुं....ने छेवटे पोते ज तेनो खुलासो करतां कह्युं के
केवळी भगवाने जे समये जे पर्याय थवानी जोई छे ते एकली पर्याय नथी जोई, पण तेनी
साथे वस्तुनो स्वभाव पण जोयो छे, ते ते पर्यायनी साथे योग्य पुरुषार्थ पण जोयो छे,
वस्तुना अनंतस्वभावो एक साथे जोया छे. ए बधाना स्वीकारपूर्वक ज ‘सर्वज्ञे जोयुं तेम
थाय’ ए वात समजी शकाय ने ए रीते जे समजे तेने तो स्वभावना स्वीकारथी
स्वसन्मुख पुरुषार्थ उपडेलो ज छे. ते तो ‘ज्ञाता’ थईने बधुं स्वीकारे छे, एटले तेने
नियत–एकान्त नथी रहेतुं. तेने तो पुरुषार्थ, स्वभाव वगेरे अनंतधर्मो एक साथे प्रणमी
रह्या छे.
केटलीक पर्याय नियत, ने केटलीक अनियत एम भगवाने नथी जोयुं; पण नियत
साथे नियत सिवायना बीजा पण, स्वभाव–पुरुषार्थ वगेरे बधा भावो भगवाने जोया छे,
तेथी ते बधा भावोने एक साथे जे स्वीकारे तेने एकान्त नियतपणुं नथी रहेतुं, तेने तो
साचुं अनेकान्तपणुं थाय छे. अनंतधर्मवाळी वस्तुना स्वीकारपूर्वक ते पोते ज्ञातापणे ज
परिणमवा लाग्यो; रागनेय करुं एवुं एना ज्ञानभावमां रह्युं नथी. एकलुं नियत माने ने
तेनी साथेना स्वभाव, पुरुषार्थ वगेरे भावो जेने न भासे, तेणे भगवाने कहेला भावो
जाण्या नथी, एणे तो पोतानी कल्पनाथी एक भाव एकान्त पकड्यो छे एटले ते
नियतवादीने मिथ्याद्रष्टि कह्यो; एम तो एकला स्वभाववादीने य मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे,
एकान्त पुरुषार्थवादीने य मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे. –तेनो अर्थ शुं? के बधा भावो एक साथे