Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : माह : २४९२
भूतार्थस्वभावनी सन्मुख थाय त्यारे ज साचो आत्मा जणाय छे, पर सामे
जोये के एकली पर्याय सामे जोये साचो आत्मा द्रष्टिमां आवतो नथी. साचा आत्मानी
द्रष्टि कहो के भूतार्थस्वभावनी द्रष्टि कहो, ते ज सम्यग्दर्शन छे. साचा आत्माने जाण्या
वगर सम्यग्दर्शन केम थाय?
साचो आत्मा ज जेणे जाण्यो नथी ते आत्मानी आराधना क्यांथी करशे?
कायम अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो आ आत्मस्वभाव, तेने अंतर्मुख परिणतिवडे
उपादेय करतां साचो आत्मा श्रद्धामां–ज्ञानमां आवे छे.–आनुं नाम धर्म, ने आनुं नाम
मोक्षमार्ग.
अरे, आवुं आनंदमय चैतन्यतत्त्व, तेमां विषयकषाय केवा ने देह केवो? पण
एने भूलीने मूढ जीव शरीरने आत्मामां जोडीने (एटले के तेने ज आत्मा मानीने)
विषयकषायोमां लीन वर्ते छे, शुद्धात्माना आनंदने ते अनुभवी शकतो नथी, स्वभावने
आधीन थाय तो सम्यक् परिणाम थईने आनंदनो अनुभव थाय; पण स्वभावने
भूलीने विषयकषायने आधीन थयो एटले परवश थईने दुःखने ज अनुभवे छे.
भाई! साचो आत्मा तो ते कहेवाय के जेनी सन्मुख थतां परम आनंदनो स्वाद
आवे. ‘आत्मा’ तो आनंद आपे एवो छे, दुःख आपे एवो नथी. आत्माना
स्वभावनी सन्मुख थाय ने दुःख रहे एम बने नहि, केमके दुःख आत्माना स्वभावमां
नथी, आत्माना स्वभावमां तो सुख ज भर्युं छे, आनंद ज भर्यो छे. एकवार आवा
आत्माने अनुभूतिमां ले.
आत्मानी आवी अनुभूति आठवर्षनी बालिकाने पण थाय छे. एने माटे लांबा
लांबा काळनी जरूर नथी पण चैतन्यस्वभावनो रस जगाडीने पर्यायने अंतर्मुख करतां
तत्क्षणे ज आवी आत्मानी अनुभूति थाय छे. ने आवी अनुभूति करे त्यारे रागथी
पार साचा आत्मानी खबर पडे, त्यारे सर्वज्ञनी ने साधक सन्तोनी साची ओळखाण
थाय, ने मोक्षतत्त्वने खरेखर त्यारे ज जाण्युं कहेवाय.