Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : माह : २४९२
अज्ञानीनो अपराध
(अशुद्धताथी छूटीने शुद्ध थवानो अवसर क््यारे आवे?)
(समयसार कळशटीका–प्रवचन: कळश: २२१)
पोतानी शुद्ध चैतन्य वस्तुनो जेने अनुभव नथी ने अज्ञानथी रागादि
अशुद्धभावने ज अनुभवे छे तथा परद्रव्य ज मने विकार करावे छे–एम माने छे, तो ते जीव
शुद्धबोधथी रहित छे, ने सम्यक्त्वथी शून्य छे. एवा अज्ञानी जीवनो शुं अपराध छे, ने ते
अपराधनुं फळ शुं छे,–ते बतावीने आचार्यदेव करुणापूर्वक जीवोने ते अपराधथी छोडावे छे.
अरे जीव! जो परद्रव्य ज बळात्कारपूर्वक अशुद्धता करावतुं होय तो ते अशुद्धताथी
छूटवानो अवसर क््यारे? केमके परद्रव्य तो जगतमां सदाय छे, जो ते विकार करावतुं होय तो
तो सर्वकाळ विकार थया ज करे, ने विकारथी छूटवानो अवसर ज कोई न रहे. माटे तारुं शुद्ध
के अशुद्ध परिणमन ताराथी ज छे–एम तुं जाण–तो शुद्ध द्रव्यना आश्रये शुद्धता प्रगट करीने
अशुद्धताने टाळवानो अवसर तने आवशे.
तुं तारी स्वतंत्रता जाण, के हुं बहार पर तरफ वळ्‌यो तेथी मने अशुद्धता थई; ने हुं
अंतरमां स्व तरफ वळुं तो मने शुद्धता थाय. मारी अशुद्धतामां के शुद्धतामां परद्रव्यनो जरा पण
हाथ नथी.–आवी स्वतंत्रता जाणतां स्वसन्मुख थईने शुद्धतानो अवसर आवे छे.
पण जे जीव पोतानी स्ववस्तुने जाणतो नथी, जेनुं सर्वस्व ज्ञान ऊंधुं छे, जेना
सम्यक्त्वचक्षु बिडाई गयां छे, ते जीव मोहशत्रुनी सेनाने जीती शकतो नथी. तेनो अपराध
शुं? के कर्म वगेरे परद्रव्य मने विकार करावे छे एम ते माने छे, ते तेनो मोटो अपराध छे.
पोतानी पर्यायने ते जाणतो नथी.
परने कारणे विकार थवानुं माननार जीवने अपराधी कह्यो, ते अपराधनुं फळ शुं? के
अनंत संसाररूपी जेल; माटे कह्युं के परद्रव्य जीवने अशुद्धता करावे एम माननारो जीवराशी
अनंतसंसारी छे, संसारसमुद्रने ते पार करी शकतो नथी. स्वाश्रयपरिणामनो तेने अवकाश
ज नथी पछी तेनी अशुद्धता क््यांथी टळे?
आ कळशना भावनी स्पष्टता करतां पं. बनारसीदासजी नाटकसमयसारमां कहे छे के–
कोउ मूरख यों कहे,
रागदोष परिनाम,
पुद्गलकी जोरावरी,
वरते आतमराम. (६२)