Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : १५ :
ज्यों ज्यों पुद्गल बल करे, धरि धरि कर्मज भेष,
रागदोषको परिणमन, त्यों त्यों होई विशेष. (६३)
(पुद्गलकर्म जीवने रागद्वेष करावे छे–एवी असत्य मान्यतावाळा अज्ञानीने
सत्यमार्गनो उपदेश आपतां कहे छे के–)
ईहविध जो विपरीत पक्ष, ग्रहे श्रद्हे कोई,
सो नर राग विरोधसें, कबहुं भिन्न न होई. (६४)
सुगुरु कहे जगमें रहे, पुद्गल संग सदीव,
सहज शुद्ध परिणमनको, अवसर लहे न जीव. (६प)
तातें चिद्भावनि विषे, समरथ चेतन राव,
राग–विरोध मिथ्यातमें,समकितमें शिवभाव. (६६)
आ चेतनराजा पोते ज पोताना चैतन्यभावोने करवामां समर्थ छे; मिथ्यात्वभावमां
तो ते रागद्वेषपरिणामने करे छे, ने सम्यक्त्वभावमां ते मोक्षमार्गने करे छे.–आ रीते जीव
पोते ज पोताना भावनो कर्ता छे.
त्यार पहेलां (श्लोक ६१मां) शिष्ये पूछयुं के हे स्वामी! आ रागद्वेषनुं मूळप्रेरक कोण
छे? शुं पुद्गलकर्म, ईन्द्रियविषयो के धन, मकान, परिजन ए कोई जीवने रागद्वेष करावे छे?
त्यारे उत्तरमां–
गुरु कहे छहों द्रव्य अपने अपने रूप,
सबनिको सदा असहाई परिणमन है;
कोउ दरव काहूको न प्रेरक कदाचि तातें,
राग–दोष–मोह वृथा मदिरा अचौन है. ६१
भाई, कोई परद्रव्य तने विकार नथी करावतुं; तारो मिथ्यात्वरूप मोहभाव ज
रागद्वेषनुं मूळ कारण छे.
शुद्धआत्मतत्त्व स्वभावथी तो ज्ञान–आनंद–सुख वगेरे गुणोथी भरपूर छे,
अशुद्धतानी उत्पत्ति तेना स्वभावमांथी नथी थती.–तो पर्यायमां अशुद्धता थाय छे ते केम थाय
छे? तेनी आ वात छे. ते अशुद्धतापणे जीव पोते पोतानी पर्यायमां अशुद्धरूप परिणमवानी
शक्तिथी ज परिणम्यो छे; पोते पोताना शुद्धस्वभावना अनुभवरूप न परिणमतां मोहरूप
परिणम्यो छे, कोई बीजाए तेने परिणमाव्यो नथी. जे जीवराशि एटले के जे कोई जीवसमूह
एम माने छे के मने परद्रव्य अशुद्धता करावे छे, ते जीवराशि मिथ्याद्रष्टि अनंत–संसारी छे.
अनंत संसारी केम कह्यो?–केमके ज्यां सुधी परद्रव्य अशुद्धता करावे छे एम माने छे त्यां
सुधी ते संसारमां ज रखडे छे; परद्रव्य तो जगतमां अंनतकाळ रहेवानां छे. हवे जो परद्रव्य
विकार करावे तो तो अनंतकाळ सुधी विकार थया ज करे; विकारथी छूटवानो अवसर ज न
आवे. माटे परद्रव्यथी पोताने अशुद्धता थवानुं जे माने तेने अशुद्धता अनंतकाळे पण न मटे,
एटले संसार तेने मटे नहि. ए ऊंधी मान्यता छोडे त्यारे ज अशुद्धता छूटशे ने त्यारे ज
संसारनो छेडो आवशे. माटे करुणा करीने संतो समजावे छे के भाई, तारी भूल तें करी छे;
परद्रव्यमां एवी शक्ति नथी के तने दोष करे. ने तारुं एवुं स्वरूप नथी के परथी तारामां दोष