: १६ : आत्मधर्म : माह : २४९२
छूटवानो उपाय बतावीए छीए–ते लक्षमां ले. मारी अवस्थामां अशुद्धता में मारी ज भूलथी
करेली छे, ते भूल क्षणिक छे, ने मारो शुद्धस्वभाव त्रिकाळ छे,–एम शुद्धस्वभावने लक्षमां
लेतां पर्यायनी क्षणिक भूल टळे छे, ने स्वभावना आश्रये शुद्धता थाय छे.
भाई, तारे भूल टाळीने सारो थवुं छे ने?–हा; तो सारो एटले के शुद्ध एवो तारो
स्वभाव छे, तेने तुं लक्ष मां ले, तो स्वभावना आश्रये सारापणुं एटले के शुद्धपणुं थशे.
अज्ञानी पोताना शुद्धस्वभावनो तो अजाण छे ने पर्यायमां जे अशुद्धता थवानी
शक्ति छे तेनो पण ते अजाण छे. अशुद्धतानी शक्ति पोतानी पर्यायनी छे, तेने बदले पर
संयोग अशुद्धता करावे छे–एम अज्ञानी माने छे. ‘पर्यायनी शक्ति’ एटले पर्यायनी ते
समयनी योग्यता; पर्यायमां अशुद्धतानी शक्ति कीधी तेथी कांई ते अशुद्धता जीवनो कायमी
स्वभाव थई न जाय, केमके पर्याय पोते एक समयनी छे. हवे अहीं ए बताववुं छे के
पोतानी पर्यायनी एक समयनी अशुद्ध ताकातने पण जे नथी जाणतो ते त्रिकाळी स्वभावनी
शुद्धताना सामर्थ्यने कयांथी जाणशे? एने नथी द्रव्यनी खबर, नथी पर्यायनी खबर, के नथी
परनी खबर; परद्रव्य बिचारुं एना भावमां परिणमी रह्युं छे, ते आ जीवने जरा पण
विकार नथी करावतुं, छतां तेना उपर अज्ञानी कलंक नाखे छे के तें मारामां अशुद्धता करी.–ए
अज्ञानीनो मोटो अपराध छे. शास्त्रभणतरमांथी जे स्वाश्रयनो आशय काढवो जोईए ते
अज्ञानीने आवडतुं नथी, ने पोतानी ऊंधी द्रष्टिथी शास्त्रना आशय पण ऊंधा ज समजे छे.
भाई, मारा दोष में कर्या छे–एम समज तो तने ते दोष टाळवानी खटक रहेशे. पण
दोष परद्रव्य ज करावे छे एम मानीश तो ते टाळवानी दरकार कयांथी रहेशे? परद्रव्य ज तने
दोष करावशे–तो तारामां कांई पुरुषार्थ छे के नहि? विकारथी बचवानो ने सम्यग्दर्शनादि
शुद्धभाव करवानो कोई पुरुषार्थ तारामां छे के नहि? ऊंधाई के सवळाई, अशुद्धता के शुद्धता,
ए बंने मारा ज पुरुषार्थनुं काम छे–एम जे समजे ते स्वपुरुषार्थ द्वारा अशुद्धता टाळीने
शुद्धता करशे. पण पोताना पुरुषार्थने ज जे नहि स्वीकारे तेने अशुद्धता टाळीने शुद्धतानो
अवसर कयांथी आवशे? अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोगना ढगला आत्माने डगावी शकता नथी,
अनुकूळताना ढगला आत्माने शुद्धतामां कांई मदद करे के कांई राग करावे–एम नथी; तेमज
प्रतिकूळताना ढगला आत्माने शुद्धताथी डगावी द्ये के कांई द्वेष करावे एम नथी; अशुद्धतामां
के शुद्धतामां आत्मा स्वतंत्र छे.
भाई, जो तारी शुद्धतानी तैयारी होय तो जगतमां सर्वज्ञो ने संतो हाजर ज छे.
तैयारीवाळा पात्र जीवने ज्ञानी–धर्मात्मानो योग मळी ज जाय छे. ज्ञानी न मळ्या माटे
रखडयो–एनो अर्थ एम छे के पोते पात्रता न करी माटे रखडयो; पोतानी पात्रता वगर
ज्ञानीनी पण साची ओळखाण थती नथी. जीवनी पोतानी पात्रता वगर ज्ञानी पण एने शुं
करे? माटे आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! तारा भावमां तुं तारी स्वतंत्रता जाण. ने स्वभाव
तरफनो सम्यक् प्रयत्न कर तो तारी अशुद्धता टळ्या वगर रहे नहि.